सरकारी नौकरी के दूसरे दिन ही हंगामा
दूसरे दिन उस इमारत में अपने बैच का एक और लखेरा दिनेश दीनू मिल गया .... गंजिंग का माकूल साथी... दोनों को उत्तरप्रदेश मासिक के सम्पादक राजेश शर्मा के साथ लगा दिया गया .... उनको पहले से जानता था ... एक समय फोटोग्राफी का शौक चर्राया तो निकल पड़ता भरी लू में साइकिल पर दूर दराज जहां तहां .... उस समय के खींचे फोटो राजेश जी को पसंद भी खूब आये .... अब उनसे खूब गपशप होती .... हालांकि ठाकुर साहब जैसे अड्डेबाज नहीं थे.... खुद के साथ ज़्यादा रहते .... लेकिन उनका साथ "सरकारी" होने से बचाता .....
अगले दिन पैरों के नीचे से ज़मीन सरक गयी ..... किसी चपरासी ने दीनू और मुझे कॉरिडोर में रोका और कहा साहब बुला रहे हैं .... कमरे के दरवाजे के ऊपर सहायक निदेशक फलाने मिश्रा के नीम की तख्ती.... अंदर घुसे.... उनको देखते ही बायीं आँख फडफडाई .... लगा कि अब कलर्क बनने से ब्र्ह्मा भी नहीं रोक सकता क्योंकि वो सहायक निदेशक अंग अंग से सरकारी महकमे के बाबू लग रहे थे........ देर तक चली चिक चिक बूम बूम के बाद मामला ठाकुर साहब के पास ले जाया गया ......
लेकिन ठाकुर साहब ही क्या उखाड़ लेते मिश्रा ए सरकार का ...... हम दोनों से बोले कर लो भाई इनके साथ कुछ दिन काम .....हम दोनों ने दो दिन उसको सूरत ही नहीं दिखाई ...... आखिर कार राजेश शर्मा का सहारा लिया..... उन्होंने तिकड़म भिड़ाई और हम दोनों उत्तर परदेश मासिक में .....
5/20/16