डेढ़ सौ साल के मुशहरी टोले में पहली मेट्रिक पास
बिहार में दसवीं के रिजल्ट को लेकर केहलगांव के पत्रकार प्रदीप विद्रोही एक अलग ही कहानी लेकर आये हैं. यह कहानी कोमल की है...
महादलित जाति की कोमल को वैसे तो सिर्फ 42.4 फीसदी अंक आये हैं. मगर उसकी कहानी इसलिए महत्वपूर्ण है कि 150 साल से बसे भागलपुर के घोघा के मुशहरी टोला की वह पहली मैट्रिक पास है. 50-60 घरों के उस टोले में आजतक कोई चौथी-पांचवी से आगे पढ़ ही नहीं पाया.
कोमल का मैट्रिक पास होना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैसी उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि है उसमें एक लड़की का पढ़ना जंग जीत लेने जैसा है. पिता दिहाड़ी मजदूर हैं और मां ईट-भट्ठे पर काम करती है. घर में पांच बहनें और एक भाई है. मां बीमार हुई तो उसके बदले मजदूरी करने कोमल को ईट भट्ठे पर जाना पड़ता है. नहीं तो घर और भाई-बहनों को संभालना, खाना-पकाना. गांव का समाज इतना दंभी और जातिवादी है कि इस टोले के लोगों पर कई किस्म के जातिवादी प्रतिबंध लगाता है.
आज भी इस टोले में किसी की मौत होती है तो लोग शवयात्रा नहीं निकाल पाते. लाश को कपड़े में लपेट कर चुपके से ले जाना पड़ता है. इन परिस्थितियों में महादलित समुदाय की एक लड़की अगर पढ़कर मैट्रिक पास कर जाती है तो वह टॉपरों से बड़ी उपलब्धि है.
बड़ी बहनों ने उतनी पढ़ाई नहीं की, मगर कोमल इन तमाम बाधाओं के बीच लगातार पढ़ती रही. उस परिवेश के बीच जहां हर सुबह यह फिक्र की जाती थी कि शाम के खाने का किसी तरह इंतजाम हो जाये..
बड़ी बहनों ने उतनी पढ़ाई नहीं की, मगर कोमल इन तमाम बाधाओं के बीच लगातार पढ़ती रही. उस परिवेश के बीच जहां हर सुबह यह फिक्र की जाती थी कि शाम के खाने का किसी तरह इंतजाम हो जाये..
वह रोज समय निकाल कर स्कूल जाती रही. और जब उसने दसवीं का फार्म भरा तो पता चला कि अपने टोले से इस परीक्षा में शामिल होने वाली वह पहली लड़की है..
6/27/18