गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

पिछले कई दिन से  अखबार की एक खबर स्थायी कॉलम का रूप ले चुकी है.……  वो खबर है किसानों के मरने की …बस …… संख्या घटती बढ़ती रहती है.… इस बार के मौसम की  ने हज़ारों साल से  चली आ रही किसानों की बदहाली को चरम पर पहुंचा दिया …… और उतना ही चरम पर पहुँच गया किसानों के साथ चल रहा आज़ाद भारत की आज़ाद सरकारों का मज़ाक …… जो बड़ी निर्ममता और क्रूरता के साथ चल रहा है ……साथ साथ घड़ियाली आंसू भी कम  नहीं बहाये जा रहे हैं  
इस बार तो प्राकृतिaक विपदा के नाम पर सरकार अपना दामन बचा ले जाएगी …… लोेकिन आगे क्या होने जा रहा है........  इस बारे में सामाजिक संगठन … शासन-प्रशासन … और मीडिया कुछ सोच रहे हैं क्या .......... पिछले पंद्रह वर्षों में करीब डेढ़ करोड़ किसान खेती और घर-बार छोड़ शहरों में रिक्शा चला रहे हैं  मज़दूरी कर रहे हैं.…
इन हालात में अब जैसी सरकारें शासन कर रही हैं तो आप  समझ लीजिये कि आपकी थाली में परोसे गए भोजन का हर अंश बाहर से मंगाना पडेगा जो हर किसी की जेब पर बेहद भारी पडेगा …खेत और कृषि अब किसान  नहीं रह गए
ऐसा होने देने के लिए बाकायदा सदियों से साज़िश चल रही है क्योंकि किसान को इंसान समझना हमने हज़ारों साल से भुला दिया है तभी तो आज  उसके  पास आज न तो न तो गाय है न बछड़ा न बैल है न हल …… हाँ सरकार ने उसकी भलाई के लिए मनरेगा नाम का एक उद्योग ज़रूर खड़ा कर  दिया है जिसने उसको अपनी ही बस्ती में मज़दूर बना  दिया है

4/16/15