पिछले कई दिन से अखबार की एक खबर स्थायी कॉलम का रूप ले चुकी है.…… वो खबर है किसानों के मरने की …बस …… संख्या घटती बढ़ती रहती है.… इस बार के मौसम की ने हज़ारों साल से चली आ रही किसानों की बदहाली को चरम पर पहुंचा दिया …… और उतना ही चरम पर पहुँच गया किसानों के साथ चल रहा आज़ाद भारत की आज़ाद सरकारों का मज़ाक …… जो बड़ी निर्ममता और क्रूरता के साथ चल रहा है ……साथ साथ घड़ियाली आंसू भी कम नहीं बहाये जा रहे हैं
इस बार तो प्राकृतिaक विपदा के नाम पर सरकार अपना दामन बचा ले जाएगी …… लोेकिन आगे क्या होने जा रहा है........ इस बारे में सामाजिक संगठन … शासन-प्रशासन … और मीडिया कुछ सोच रहे हैं क्या .......... पिछले पंद्रह वर्षों में करीब डेढ़ करोड़ किसान खेती और घर-बार छोड़ शहरों में रिक्शा चला रहे हैं मज़दूरी कर रहे हैं.…4/16/15