बुधवार, 1 अप्रैल 2020

ब्राह्मणवाद के खिलाफ पहली बग़ावत

त्रेता या उससे पहले के सतयुग से चले आ रहे एक झगड़े को आपके सामने लाना अपना फर्ज समझता हूँ..उस झगड़े में आम आदमी को क्या नुकसान उठाना पड़ा, यह तो पता नहीं लेकिन भगवान श्रीराम को इसका खामियाजा बुरी तारा भुगतना पड़ा..

आगरा में जिन दिनों अखबार निकाल कर उसका मालिक ठगी में मशगूल था और अपन उसके अखबार की बजा रहे थे उन दिनों मथुरा के एक ज्ञानी महंत से मिलना हुआ .. बातचीत का विषय था ऋषि विश्वामित्र..

विश्वामित्र पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने जातिवाद और ब्राह्मणवाद के खिलाफ खुल कर आवाज़ उठाई..

उस समय उत्तरभारत में इक्ष्वाकू वंश के राजा दशरथ के यहां एक स्वघोषित ब्रह्मऋषि हुआ करते थे वशिष्ठ..इन्हीं की मदद से दशरथ की तीन रानियों ने चार पुत्र पैदा किये..

वशिष्ठ की ख़लीफाई से मुनि विश्वामित्र का बीपी हमेशा हाई रहता क्योंकि वो भी ब्रह्मऋषि बनना चाहते थे..दिक्कत यह थी कि विश्वामित्र ब्राह्मण न हो कर एक पैड़ी उतर क्षत्रिय जाति के थे..शायद कभी राजा वाजा भी रहे थे..अपने किसी पिछले जन्म में कुछ किया होगा, जो सन्यासी हो गए..

तो विश्वामित्र ने ब्रह्मऋषि बनने को न जाने कितनी तपस्याएं कर डालीं.. सारे सीनियर देवताओं ने उनकी तपस्याओं को सराहा और उन्हें ब्रह्मऋषि बनाना चाहा, लेकिन वशिष्ठ ने दस्तख़त करने से मना कर दिया..

ब्रह्मऋषि वशिष्ठ ने चुग्गा डाला विश्वामित्र के सामने कि राजऋषि बन जाओ..इससे ज़्यादा सोचना भी मत..इधर सन्यासी भये विश्वामित्र थे तो क्षत्रिय ही न..तो हमेशा किसी न किसी भिड़े रहते और अपने कमंडल से गंगा जल छिड़क तपस्या करने बैठ जाते..

उनकी इस तापस्याबाजी से देवता भी दुःखी रहने लगे..तभी किसी राजा को मोक्ष प्राप्ति किये बिना सशरीर स्वर्ग जाने का शौक चर्राया..सारे देवताओं ने हाथ खड़े कर दिए तो वो राजा ऋषि विश्वामित्र के पास पहुंचा.. मुनि देवताचीफ इंदर से किसी बात पे ख़फ़ा चल रहे थे..वो राजा से बोले---तेरी मंशा मैं पूरी करूँगा..इंद्र तुझे स्वर्ग में नहीं घुसने दे रहा तो जाने दे..मैं तपस्या कर तुझे स्वर्ग से भी नायब जगह भिजवाऊंगा..यह कह कर उन्होंने कमंडल से गंगाजल हथेलियों में लिया और बैठ गए.. 

तापस्या घनघोर हो गई और वो राजा धरती और स्वर्ग के बीच कहीं पहुंच भी गया.. अब तो इंद्र की सिट्टी पिट्टी गुम.. लेकिन करें क्या, कुछ दिन से ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी नाराज से चल रहे थे..

इंद्र ने अपनी पुरानी चाल चली और मेनका अप्सरा को भेज दिया विश्वामित्र की तपस्या तुड़वान को..मेनका ने पता नहीं कौन से ठुमके लगाए कि विश्वामित्र की तपस्या भंग हो गई... मेनका गर्भवती भी हुई ..लेकिन इंद्र फजीहत से बच गए... और वो राजा किसी और ही सृष्टि में पहुंच त्रिशंकु कहलाया..

सुना है कि कुछ जातियां और गधा ऊंट जैसे पशु और मुर्गा मुर्गी टाइप पक्षी और कई कीट पतंगे विश्वामित्र की उसी सृष्टि की देन हैं...

राम को लेकर विश्वामित्र और वशिष्ठ में हुए पंगे का जिक्र अगली बार..

जारी...
4/9/18