गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

गतांक से आगे...

अम्बरनाथ के जंगलों में..

पहले तब के अम्बरनाथ का जुग्राफिया.. मरगिल्ला सा स्टेशन..पेट और पीठ आपस में चिपक गई हों जैसा प्लेटफॉर्म..वहां से निकल कर अजीबोगरीब बसावट..कोई मकान टेकरी पर तो कोई गहरे खड्ड में..एक साथ तीन मकान बहुत कम..मकानों के बीच पेड़ों और झाड़ियों की भरमार..पांच सौ फुट ऊपर तक जाती पहाड़ी कच्ची सड़क..दो तरफ घना जंगल..

खरे साब कस्टम ऑफिसर.. तो घर भर में आयातित सामान की भरमार..बाथरूम तक में टीवी..हर समय किसी सेठिये की मर्सिडीज़ द्वारे पे..खुद के पास बड़ी सी कार.. चालक ड्राइवरी के अलावा किचेन भी संभालता.. वहां से मेन बॉम्बे की दूरी दो घंटे की..

खड्ड में धंसे इस घर के दाहिनी तरफ के टैरेस से दिखती एक पहाड़ी...उस पहाड़ी पर किसी पीर की मज़ार...रास्ता घने जंगल से हो कर..वहीं बीच जंगल में हज़ार साल पुराना मंदिर, जिसमें खरे साब उल्टी सीधी कमाई को पुण्य में बदलने को छुट्टी वाले दिन लंबी पूजा करते..दो बार साथ में गया तो मैं अंदर न जा कर एक नहर के किनारे किनारे चलता चला जाता और घने जंगल में धंस जाता, जहां एक से एक विचित्र जीव इस जीव को घूरते..

उषा दी सिसोदिया वंश की..खरे साब उनके सामने टेंचू जैसे बने रहते..जब तक उषा दी को मातृत्व वाला दर्द नहीं हुआ, ज़िन्दगी बड़ी चैन से कट रही थी अपनी..न फेल होने का डर, न वो बेनाम दर्द..बस दिन भर हल्ला गुल्ला.और यहां घूम वहां घूम..

मां बनने के दिन नज़दीक आ गए तो उषा दी चर्चगेट के एक शानदार हॉस्पिटल में भर्ती..खरे साब का वहीं उनके साथ रहने का इन्तज़ाम ..बचा मैं, तो दिन में खरे साब की तरफ से पूरी बम्बई टूलाने का पूरा बंदोबस्त, जो अगले 15 दिन बिना बाधा के चला..

लेकिन उन 15 दिनों की कई रातें बड़ी खौफ़नाक गुजरीं, जो दो बजे अम्बरनाथ स्टेशन से शुरू हो जातीं..
इस बारे में अगला अंक....
1/22/18