बुधवार, 1 अप्रैल 2020


हम्माम में सब नंगे हैं

दैनिक जागरण ने जो हरकत वो तो शर्मनाक है..लेकिन खबरों के साथ इतनी ही घटिया हरकत सामाजिक सरोकार की बड़ी बड़ी बातें करने वाला जनसत्ता भी करता रहा है...

सती प्रथा को महिमामंडित करने वाला एकमात्र अखबार जनसत्ता है..जिसने स्वयंभू 
महान पत्रकार और संपादक बनवारी का लेख संपादकीय पृष्ठ पर छापा था...

1986 के बाद इस अखबार ने जिस तरह आरएसएस और विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ मिल कर राजीव गांधी पर कीचड़ उछालो अभियान छेड़ा वो पत्रकारिता के इतिहास में शर्मनाक है..

इसी तरह 1991 में मंडल आंदोलन के बाद शुरू हुए कमंडल आंदोलन में उत्तरप्रदेश और अयोध्या पर जनसत्ता की रिपोर्टिंग पत्रकारिता पर काला धब्बा है...जनसत्ता के मुख्यालय से अयोध्या में विशेष तौर पे रखा गया संवाददाता अपनी रिपोर्ट में बाकायदा साधु संतों का खून नालियों में बहता हुआ दिखा रहा था और प्रभाष जोशी का अखबार उस निहायत घटिया रिपोर्टिंग को जस का तस छाप रहा था..

प्रभाष जोशी राजीव गांधी की हत्या के बाद चंडीगढ़ आये थे तो मीटिंग में बोले कि गोयनका जी नहीं रहे, राजीव गांधी भी चले गए, अब जनसत्ता का सुर बदलना पड़ेगा...तो यह है हिंदी पत्रकारिता का हाल..

नवभारत टाइम्स, लखनऊ में 86 के आसपास राजपूत संपादक के रहते उत्तरप्रदेश के राजपूत मुख्यमंत्री के खिलाफ एक शब्द नहीं छप सकता था...

आज भी सारे हिंदी अखबार कमोबेश यही घटिया खेल खुल कर खेल रहे हैं.....



4/23/18