ज्ञान जी से अपनापा बहुत रहा लेकिन जान-पहचान शून्य …… अड़तालीस साल पहले खुर्जा में चाचा प्रभात मित्तल की शादी में ज्ञान जी सुभाष परिहार के साथ आये थे … तो जनवासे में खुसुर-पुसुर होने लगी....कौन आये हैं ये देखने हम भी उस छोटी सी भीड़ में शामिल हो गए … काली दाढ़ी और बड़े बाल वाले ज्ञान जी काफी हंसमुख लगे …… बस, अगले कई साल इस परिचित नाम के गुजर गए … पहल ने ज्ञान जी को कभी भूलने ही नहीं दिया … जबकि पढ़े या देखे दो-चार अंक ही होंगे....
फिर 1995 में ज्ञान जी और परिहार जी से मेरठ में मुलाकात …दोनों अपने स्वर्गीय मित्र की शादी में आये थे … अगली सुबह दिल्ली तक का साथ और समय एक छोटी सी नमस्ते.... अगली दो मुलाकातें जैसे आपस में टकराना जाना …
फिर तो दस साल गुजर गए....अब अपना मक़ाम था मुजफ्फरपुर .... अखबार जम कर लेखन हो रहा था … तभी रश्मि रेखा ने राग छेड़ा कि आप पहल नहीं लिखते …… उसी दिन छपा कुछ भी ज्ञान जी को भेज दिया …साथ में उन मुलाकातों का जिक्र भी … कुछ ही दिन में ज्ञान का जवाब … पिछला कुछ याद नहीं....प्रभात की याद है....तुम्हारा लेखन काफी अलग हट कर है.... पहल के लिए शहरनामा लिख कर भेजो … भेज दिया और पहल में छप भी गया....फिर क्या … मैं विषय बताता और वो पहल में छापने का ऐलान …सुयोग से जबलपुर ने अपने पास बुला लिया …वहां पहुँचते ही ज्ञान जी खोजा … पता चला अपनी बेटी के पास यूएस गए हुए हैं … मायूस हो गया … एक दिन किन्ही पंकज स्वामी का फ़ोन आया की ज्ञान जी आपको तलाश रहे हैं आप उन्हें फ़ोन कर लीजिये …फ़ोन पर उन्होंने बेहद खुशी जताई और घर आने को कहा … तुरंत किसी को पकड़ उनके घर गया....खूब सारी बातें हुईं .... अगली बार घर गया तो अपना एक लेख भी ले गया ....देख कर बोले कि पिछली बार लेकर क्यों नहीं आये इस अंक में छाप जाता....कुछ दिन बाद उनका फ़ोन आया ये लेख तो भयंकर है दंगा हो जाएगा....… ज्ञान जी से मुलाक़ात होती रही .... अचानक जबलपुर छूट गया … तीन साल बाद जबलपुर जाने और ज्ञान जी का सिलसिला शुरू हो गया … पर यही कहूँगा कि अपनापा तो बहुत है पर जान-पहचान बहुत कम
6/24/15