बुधवार, 1 अप्रैल 2020


एक कश्मीरी पंडित की डायरी

25 मिनट की यह फ़िल्म एक कश्मीरी पंडित की आपबीती है, जिसका घर 1990 की कश्मीर हिंसा में जला दिया गया था..जाने माने पत्रकार, लेखक और डॉक्युमेंट्री निर्माता अश्विनी भटनागर को यह डायरी सीमा सुरक्षा बल की उस टुकड़ी के पास से मिली, जो उस कश्मीरी पंडित के घर को तो जलने से नहीं बचा पायी लेकिन राख के ढेर में उसके हाथ यह डायरी लग गई थी..

फ़िल्म में डायरी के पन्ने पढ़े हैं प्रख्यात अभिनेत्री दीप्ति नवल ने..और उनकी आवाज़ के साथ साथ उस कश्मीरी पंडित के हालात का फिल्मांकन अश्विनी की इस डॉक्युमेंट्री में है, जो बेहद ह्रदयविदारक है..

पूरी फिल्म श्रीनगर में ही फिल्माई गई है और फिल्मांकन के दौरान हर वो दृश्य सामने आता है कि कैसे उस कश्मीरी पंडित ने पल पल करीब आ रही मौत को महसूस किया..उस मकान को घेरे खड़ी भीड़ की दिल को हिला देने वालीं आवाज़ें..उनका जेहादी गान और फिर उस भीड़ का अपने शिकार को मौत के घाट उतारना..

25 मिनट की इस फ़िल्म में हमारे सामने कुछ नहीं घट रहा है..न आगजनी है..न जेहादी भीड़ है और न उस भीड़ का शिकार है..लेकिन जिस तरीके से स्क्रिप्ट लिखी गयी गई है और उस स्क्रिप्ट के एक एक शब्द को कैमरे में पिरोया गया है और फिर दीप्ति नवल की आवाज़ में उस कश्मीरी पंडित की त्रासद आपबीती की बयानी..ये सब मिल कर ऐसा कोलाज तैयार करते हैं कि जैसे दर्शक के सामने कश्मीर अपने पूरे आकार में भस्मीभूत हो रहा है..

यह दीप्ति नवल की आवाज़ नहीं, उस कश्मीरी पंडित का निःशब्द रुदन है, जिसमें हर शब्द की अपनी सिसकियां हैं कि कैसे मानवीयता खत्म होती है और कैसे मानवीयता खत्म की जाती है..

पूरी फिल्म में दीप्ति ने जैसे उस डायरी को जिया है..जिसके साथ साथ पुरुष आवाज़ में उस खौफ़नाक माहौल की बयानी दृश्य दर दृश्य सामने आ रही है..

फ़िल्म एक परिवार के जम्मू पलायन से शरू होती है...श्रीनगर ख़ौफ़गाह बन चुका है जहां अब जान सुरक्षित नहीं है..लेकिन नौकरी और घरबार के चलते वो कश्मीरी पंडित अकेला रहने को अभिशप्त है...जेहादी खौफ़नाक आवाजों से घिरा वो युवक कर्फ्यू में अपने अकेलेपन से आजिज़ आ कर डायरी लिखना शुरू करता है .. उस डायरी में वो एक समाज के तानेबाने के दरकते एक एक एहसास को शब्द देता है..वो आस पड़ौस, जो कल तक उसके हर सुख दुख का साथी हुआ करता था, आज वो हिंसक भीड़ बन उसे खत्म करने पर आमादा है..सेंकडों साल का भाईचारा धर्म के लबादे में गुम हो, उसका अस्तित्व मिटाने उसके दरवाज़े पर पहुंच गया है..वो चेहरे, जो कल तक उसे देख कर मुस्कुराते थे आज उनके नुकीले दांत उसकी गर्दन को नोचने की तैयारी कर रहे हैं..

उस कश्मीरी पंडित की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि वो अपने देश में, अपने शहर में, अपने मोहल्ले में, अपने घर में और अपने लोगों के हाथों मारा जाने को अभिशप्त है...

आखिरकार, जेहादी आवाज़ों से लथपथ एक भीड़ उसके घर में आग लगा देती है और घर की दर ओ दीवारों के साथ साथ वो
युवक भी मलबे के ढेर में बदल जाता है..,

फ़िल्म के स्क्रिप्ट लेखक और निर्माता अश्विनी भटनागर हैं..अश्विनी ने वर्षों उच्चकोटि की पत्रकारिता में गुजारे..लखनऊ में टाइम्स ऑफ इंडिया में रिपोर्टिंग के नए नए आयामों से गुजर कर दिल्ली में संडे मेल, और फिर चंडीगढ़ में द ट्रिब्यून का संपादन..और अंत में एक चैनल की ज़िम्मेदारी संभाल कर अब अपना पूरा वक्त लेखन को दे रहे हैं.. उन्होंने पिछले तीन साल में ज्वलंत मुद्दों से ओतप्रोत सात किताबें लिखीं..उनका लिखा एक उपन्यास ..हाई बाउंसिंग लवर ..देश विदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है..कश्मीर के आतंकवाद के अलावा अश्विनी ने राम वनगमन का सच और लक्ष्य द्वीप : द लिविंग आइलैंड जैसी डॉक्युमेंट्रीज़ भी बनाई हैं, जो बहुत चर्चित रही हैं..

कश्मीर समस्या के विशेषज्ञ और पत्रकार 
आरसी गंजू इस फ़िल्म के एक्सिक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं और फ़िल्म के निदेशक हैं सुषेन भटनागर..सुषेन पुणे फ़िल्म इंस्टिट्यूट से प्रशिक्षित हैं..और उन्होंने बॉलीवुड की कई चर्चित फिल्मों का निदेशन किया है..

   7/7/18