कौन कहता है कि पाकिस्तान में ईश निंदा पर फाँसी दी जाती है! अगर आप मुस्ताक अहमद युसुफ़ी को पढ़ें तब लगेगा, वहां के लेखकों की हर अदा में पंच है, व्यंग्य है. ताउम्र ठाठ से लिखा युसुफी ने और कुछ रोज़ पहले वे 94 साल की आयु में स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हुए. देखिए उनके पंच की बानगी. यह पोस्ट श्री अनूप शुक्ल की वाल से
1. इस्लाम के लिये सबसे ज्यादा कुर्बानी बकरों ने दी है।
2. मर्द की आंख और औरत की जबान का दम सब से आखिर में निकलता है।
3. इस्लामिक दुनिया में आज तक कोई बकरा स्वाभाविक मौत नहीं मरा।
4. दुश्मनी के लिहाज से दुश्मनों के तीन दर्जे होते हैं- दुश्मन, जानी दुश्मन और रिश्तेदार।
5. आदमी एक बार प्रोफ़ेसर हो जाये तो जिन्दगी भर प्रोफ़ेसर ही रहता है , चाहे बाद में वह समझदारी की बातें ही क्यों न करने लगे।
6. उस शहर की गलियां इतनी तंग थीं कि अगर मुख्तलिफ़ जिंस (विपरीत लिंगी) आमने-सामने से आ जायें तो निकाह के अलावा कोई गुंजाइश नहीं रहती।
7. वो जहर देकर मारती तो दुनिया की नजर में आ जाती, अन्दाज-ए-कातिल तो देखो -हमसे शादी कर ली।
8. दुनिया में गालिब वह अकेला शायर है कि जो समझ में आ जाये तो दंगा मचा देता है।
9. कुछ लोग इतने मजहबी होते हैं कि जूता पसन्द करने के लिये भी मस्जिद का रुख करते हैं।
10. मेरा ताल्लुक इस भोली-भाली नसल से है जो यह समझती है कि बच्चे बुजुर्गों की दुआओं से पैदा होते हैं।
11. हमारे जमाने में तरबूज इस तरह खरीदा जाता था जैसे आजकल शादी होती है- सिर्फ़ सूरत देखकर।
12. सिर्फ़ 99 प्रतिशत पुलिस वालों की वजह से बाकी एक प्रतिशत भी बदनाम हैं।
13. हुकूमतों के अलावा कोई भी अपनी मौजूदा तरक्की से खुश नहीं होता।
14. फ़ूल जो कुछ जमीन से लेते हैं उससे कहीं ज्यादा लौटा देते हैं।
15. हमारे मुल्क की अफ़वाहों की सबसे बड़ी खराबी यह है कि वे सच निकलती हैं।
6/26/18