गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

अधूरा ज्ञान तो मत बघारो..

फेसबुक पर कई बार ज्ञान की ऐसी गंगा बहाई जाती है कि दिल भन्ना जाता है..मसलन त्रिपुरा में लेनिन की प्रतिमा को तोड़े जाने की आलोचनाओं पर बामियान तक के उदाहरण सामने रख दिये गए कि जैसे बुद्ध की प्रतिमा को तोड़ने में मेरा हाथ हो..और अगर मैंने विरोध में गला नहीं फाड़ा तो मैं अधर्मी और काफ़िर हूँ...और ये सारी दिक्कत अधूरा ज्ञान प्राप्त कर समूचा ज्ञान बघारने की है...और यहां स्पष्ट कर दूं कि मैं वास्तव में सौ टका काफ़िर हूँ..मूर्ति भंजक हूँ..

लेनिन की प्रतिमा तोड़े जाने को बामियान से जोड़ने की कोई तुक नहीं बैठती..लेनिन कोई आस्था से जुड़ा मसला नहीं, समाज के सबसे असहाय इंसान को ऊपर उठाने की एक सोच है, लेनिन कोई उपदेशक नहीं एक लड़ाकू व्यक्ति का नाम है...

अज्ञान उतना खतरनाक नहीं है, जितना थोथा ज्ञान खतरनाक है। शास्त्र जितने लोगों को डुबाते हैं, उतनी और कोई चीज किसी को नहीं डुबाती। कई लोग कागज की नाव में बैठकर सागर में उतर जाते हैं।

शास्त्र की नाव कागज की नाव है। उससे तो बेहतर है कि बिना नाव के उतर जाना। क्योंकि नाव का भरोसा न हो तो कम से कम अपने हाथ-पैर चलाने की कुछ कोशिश होगी। और जो बिना नाव के उतरेगा, वह तैरना सीखकर उतरेगा। जो नाव में बैठकर उतर जायेगा–और कागज की नाव में–वह इस भरोसे में उतरेगा कि मुझे क्या करना है, नाव पार कर देगी। वह डूबेगा!

लेकिन कागज की नाव में बैठने को कोई राजी न होगा, शास्त्र की नाव में बैठने को करीब-करीब पूरी पृथ्वी राजी हो गयी है। कोई बाइबिल की नाव में बैठा है, कोई गीता की नाव में बैठा है, कोई कुरान की नाव में बैठा है; कोई महावीर के वचनों की नाव में, कोई बुद्ध के वचनों की नाव में..

तो हर धर्म आज कागज की नाव बना हुआ है, और हर कोई इस नाव में बैठ नदी पार करने की ज़िद पकड़े है..

3/8/18