हमारे संपादक नंदकिशोर त्रिखा
बत्तीस साल पहले लखनऊ नवभारत टाइम्स में रामपाल जी के जाने के बाद त्रिखा दिल्ली से स्थानीय संपादक बना कर भेजे गए थे..अभी अभी कुछ मित्रों से उनके न होने का पता चला...
2011 के जाड़ों में आगरा में हुए एक पत्रकार यूनियन के सम्मेलन में अरसे बाद उनसे मिलना हुआ था...
नवभारत टाइम्स में मेरे जैसे निहायत अराजक इंसान से पटरी न बैठने के बावजूद त्रिखा जी हमेशा बहुत अच्छे से पेश आये..
त्रिखा जी गुलिस्तां कॉलोनी के अपने आवास पर विभिन्न मौकों पर सत्संग वगैरह कराते रहते थे...और तब मेरे अलावा सारा स्टाफ उनके यहां मौजूद रहता था..त्रिखा जी मुझे केबिन में बुला कर मुस्कुराते हुए प्रसाद देते और पूछते..यह तो खा लेंगे न आप..
कई बार मेरे लेखन से बेहद अपसेट हो जाते तो नवीन जोशी उन्हें संभालते...
उन दिनों टाइम्स ऑफ इंडिया और नवभारत टाइम्स में रविवार की दोपहर सिर्फ और सिर्फ मेरे गायन की हुआ करती थी.. रामपाल जी तो भूले से भी संडे को आफिस नहीं आते थे कि आज तो राजीव ने मजमा जमा रखा होगा...लेकिन एक रविवार त्रिखा जी आ गए...हॉल के अंदर शीतल मुखर्जी का खास ऐसे मौके पे लाया ट्रंजिस्टर चिंघाड़ रहा तो उससे भी तेज आवाज में मेरा गला.. टाइम्स ऑफ इंडिया में बैठा शीतल मुखर्जी वाह वाह कर ताल दे रहा..यहां ध्यान दें कि मैं कुर्सी पे नहीं, बल्कि बड़ी सी गोल मेज पर गायकों की मुद्रा में बैठता था...
त्रिखा जी काफी देर तक दरवाजे पर खांसते रहे खखारते रहे, लेकिन इतने शोर में कहां सुनाई देता है..अंत में त्रिखा जी ने अंदर कदम रखा और सीधे अपने केबिन में..मैंने किसी तरह अपनी आवाज रोकी, ट्रांजिस्टर बंद किया...कुछ देर की घनघोर शांति के बाद त्रिखा जी ने बुलवाया...
राजीव जी यह क्या हो रहा है..तो अपन ने क्या कहा..सुनिये...त्रिखा जी आज तो आपको आफिस आना ही नहीं चाहिए था..संडे तो मेरा दिन होता है..इस बेहद नामाकूल अंदाज़ से खफ़ा हो कर त्रिखा जी जो चाहे कर सकते थे..लेकिन एक तो वो दिन ही बिल्कुल और थे..त्रिखा जी भी उतने ही शानदार इंसान..
करीब दो साल का साथ रहा मेरा उनके साथ..87 में चंडीगढ़ जनसत्ता जाते समय त्रिखा जी ने आफिस में मेरी पार्टी कर मुझे विदा किया था...
आज के चाकर किस्म के पत्रकार कल्पना भी नहीं कर सकते पत्रकारिता के उस समय के बेहद शानदार माहौल का...और वैसा माहौल देने में त्रिखा जी का होना कितना जरूरी होता था...
1/18/18