गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

 मेरी दिल की  राहों से निकल कब फूल खिल गए
कब पत्तियां ओस से भीग गयीं 
और कब एक मधुमक्खी
 को मैं भा गया  
 सृष्टि में कब ये घटा
 कौन सा पहर था कौन सी घड़ी थी
 किसी को पता नहीं..चश्मदीद तो बहुतेरे थे 
 पर पात्र हमीं दोनों थे
 तभी तो मैं तुम्हारी गुंजन के
 इंतज़ार में खोया खोया सा बैठा रहता हूँ
 कि कब तुम आओ और मेरी किसी पंखुरी पर बैठ
 इज़हार करो प्यार का दुलार का 
 मुझे छू कर चूम कर ही तो किसी दिन
 किसी पेड़  के तने पर तुम बना लेती हो 
 हज़ारों लाखों रोम छिद्र का एक घर
 और हर रोम छिद्र को भर देती हो
 मीठे मीठे एहसास से
 तुम मुझे फूल से पराग और पराग से
 शहद बनाने के काम में जुटी रहती  हो
 लेकिन  जानती हो मैं क्या चाहता हूँ
 किसी दिन तुम मेरे छोटे छोटे हाथों पर बैठो
 और मैं मुट्ठी बंद कर लूँ
 न मैं पराग बनना चाहता हूँ न शहद
 तुम मेरी छोटी सी हथेली पर
 ही अपना बसेरा बना लो
 और मैं तुम्हें छू सकूँ जब चाहे

12/15/17