भारत में छात्र राजनीति
राजीव मित्तल
सन 1925 में काकोरी में रेलगाड़ी रोककर अंग्रेजी हुकूमत का धन लूट लिया गया था। राशि 10-15 हजार के बीच रही होगी। राम प्रसाद बिस्मिल को छोड़ लूट में शामिल सभी क्रांतिकारी 18-20 साल के थे।
काकोरी कांड में बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी पर लटका दिया गया था।
इस घटना के 70 साल बाद एक बाप ने अपने 12 साल के बेटे और उसके दोस्तों के बीच किसी मनमुटाव को सुलझाना चाहा और इस चक्कर में उनमें से एक लड़के को चांटा मार दिया। नतीजे में रात को करीब 40 लड़कों ने घर पर हमला बोल दिया और तोड़फोड़ मचाई। बाप को पीछे की दीवार फलांद कर थाने भागना पड़ा, पुलिस आयी तब उसकी जान बची।
और जब कुछ परीक्षार्थी एसी कोच से निकाले जाने के गुस्से में किसी स्टेशन के पास पटरी पर 25 फुटा पोल डाल दें ताकि जो भी ट्रेन वहां से गुजरे वह उलट जाए और उसके मरते और घायल हुए यात्रियों को पता चले कि ऐसा एक महान उद्देश्य से किया गया है..खैर, गुजरना था राजधानी एक्सप्रेस को, पर वह उलटी नहीं क्योंकि एक सिपाही ने अपनी जान पे खेल कर वह पोल किसी तरह से खिसका दिया।
तोे यह है एक आंदोलनकारी सफर जो अपने मुकाम पर पहुंच गया है। यह तो इतिहास बताएगा कि देश को आजाद कराने में बिस्मिल और उनके युवा साथियों का कितना योगदान था, लेकिन आज़ादी के बाद के हज़ारों हज़ार छात्र आंदोलन और कर्ता धर्ताओं के कारनामे बिस्मिल और उनके तीन साथियों की शहादत को, उनके सपनों को चीथड़े-चीथड़े करने पर आमादा है..
आजाद भारत की राजनीति का असर एड्स से भी ज्यादा भयानक होगा, इसका आभास महात्मा गांधी को था तो, पर वह अंतिम दिनों में अपने को उस चौराहे पर पा रहे थे, जहां से कोई रास्ता कहीं को नहीं जाता था।
एक देश के विकास में उसका नौजवान तबका सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता है और इसी तबके को इस देश की राजनीति विध्वंस के रास्ते पर ले जा रही है। किसी भी सार्वजनिक स्थान पर, जहां चार-पांच युवकों का झुंड मौजूद हो, आप अपने घर की किसी युवती के साथ बेखौफ बैठ सकते हैं?
दीपा मेहता की फिल्म फायर हो या ना बनी गंगाजल या हाल में प्रदर्शित गर्लफ्रेंड, उसके लिये हंगामा मचाने में सबसे आगे यही युवा वर्ग रहा, जिसको यही नहीं पता कि वह ऐसा क्यों कर रहा है। इस वर्ग के खालीपन, बेरोजगारी, समाज और परिवार की जिम्मेदारियों के प्रति उदासीनता का हर राजनैतिक दल बरसों से शानदार इस्तेमाल कर रहा है। और जो पैसों वालों के जिगर के टुकड़े हैं वे नशे में धुत हो बीएमडब्लयू में बैठ फुटपाथ पर रात गुजार रहे लोगों को टमाटर की तरह मसल रहे हैं या राह चलती लड़की को कार में घसीट अपने आंदोलनकारी दिलो-दिमाग को सकून पहुंचा रहे हैं।
कई साल पहले चीन के तियेनमेन चौक पर एक आदर्श के लिये जमा छात्रों को वहां की सरकार ने गोलियों से भून डाला था, जिसकी सारी दुनिया में निंदा हुई। लेकिन उसी के बाद चीनी सरकार ने अपने युवा वर्ग को देश के विकास के उस इन्फ्रास्ट्रक्चर का हिस्सा बना लिया, जो अमेरिका तक को हैरान किये हुए है।
जेटली साहब देश की विकास गति छह फीसदी रखें या दस फीसदी, राजधानी ट्रेन के रास्ते पर पोल डालने से वह युवा आंदोलनकारियों को नहीं रोक सकते, क्योंकि इस विकास में उनकी कोई हिस्सदारी नहीं है। न लाभ में न हानि में..
जारी..
12/16/17