दलित के घर भोजन...
आज की तारीख में दलित के घर भोजन करने का मार्केट खूब जोर मार रहा है...भाजपा ने तो बाकायदा इसे पार्टी लाइन बना कर निर्देश तक जारी कर दिए हैं कि दलित के साथ रोटी के संबंध बनाओ...बेटी का क्या करना है यह अपने आप तय कर लो...
पार्टी के इस निर्देश पर सबसे खूबसूरत बयान उमा देवी का आया है कि वो कोई भगवन राम नहीं इसलिए वो शबरी के झूठे बेर खाने का धत्तकर्म कभी नहीं करेंगी..
बहरहाल चुनाव करीब हैं दलितों के वोट बहुत मायने रखते हैं...ऊपर से आरक्षण का मुद्दा अलग बांस बना हुआ है, दलितों का इससे ज़्यादा भला हो नहीं सकता...बस यदाकदा राजपूत या अन्य ऊंची जात वाले दलितों की मूंछ जरूर उखाड़ लेते हैं, या उसे घोड़ी पर चढ़ने का खामियाजा अपनी चमड़ी उतरवा कर देना पड़ता है...
यह सब करते हुए एक रात दलित की खटिया पर अभियान शुरू हो गया है...बस इससे पहले दलित के आंगन में एक स्विस कुटिया तैयार की जाती है, एसी वगैरह लगा कर सोया जाता है...खाने के लिए शबरी के बेर सुअर खाते हैं और भोजन किसी बढ़िया होटल से पैक करा कर दलित के आंगन में जूठन गिराने का भाईचारे जैसा खेल किया जाता है...
उनके जाते ही एक ट्रक आ कर सारा तंबू उखाड़ ले जाता है...इस खेल का रंग तब और जमता है जब मंत्रिवर रविशंकर प्रसाद पटना के होटल मौर्य में एक दलित परिवार के साथ भोजन करते हुए उन्हें कांटे छुरी पकड़ना भी सिखाते हैं...हैं न हम दुनिया के सबसे बड़े जमूरे!
5/2/18