बुधवार, 1 अप्रैल 2020

आम रे आम

आम के मामले में मुज़फ्फरपुर जितना ठाठदार रहा, जबलपुर उतना ही कांईया साबित हुआ..मिठाई के मामले में भी डिट्टो यही हाल..जबलपुर के भंवरताल इलाके में नईदुनिया का गेस्टहाउस सब मामलों में बढ़िया, पर पहली बरसात ही मिठाई और आम के मामले में नामुराद साबित हुई..उसका बड़ा कारण वहां पे रुके दो जीएमों का डायबीटिक होना.. रात में व्हिस्की पी कर चाहे जितने हल्ले मचवा लो, लेकिन दिन में चाय तक में चीनी नहीं..

अब सोचिये, मुज़फ्फरपुर में पूरे पांच साल मिठाइयों में डुबकी मार कर और आम की ढेरियों पर लौट लगा कर आये इस इंसान के दिल पे क्या बीतती होगी, जब खाने के साथ कलाकंद या रसगुल्ले के बजाय थाली में नमकीन सेव फुदक रहे हों..जी तो यही करता कि उस भोजनिये ठाकुर के सिर पे थाली पटक दूँ..जहां तक आम का सवाल है, उसे तो भूल ही जाइये..

ऊपर से एक कहर और कि जबलपुर में पान खाने की तमीज़ किसी को भी नहीं..हाय, कहाँ केले के पत्ते में लिपटे मुज़फ्फरपुर के पान..खिलाने वाला किस इसरार से खिलाता, दो चार बातें भी करता, और कहां पान के मामले में जबलपुर की सभ्यताहीन सुपारी और तंबाकू की पुड़िया.. और पान है भी सोंफ़िया कि जिसको खालो तो जीने की इच्छा बिल्कुल ही मर जाये...

इसी चक्कर में नईदुनिया के पूरे स्टाफ को रोता छोड़ मेरठ भाग गया..पर वो तो और भी सिलबिल्ला साबित हुआ..

खैर जबलपुर और मेरठ के दिनों को क्यों याद करूँ.. मुज़फ्फरपुर का वो ब्रह्मपुरा चौक, जहां सुबह सुबह विभिन प्रकार के आमों की ढेरियां अपन को देख आंखें मटकातीं..
या जीरो माइल की बूढ़ी गंडक पार की वो मंडी, जहां भोर में त्रिपाठी जी को लिए लिये पहुंच जाता और पहली चाय वहीं पी जाती..शाम को पुराने बेतिया रोड पर की मंडी से कई किलो आम छांट कर उस दिलद्दरी अशोक सिंह को स्कूटर पर पीछे लटका कर  मोतिहारी रोड पर उछाल मारता और गजराज होटल की तरफ से वापस घूम लीची के बागानों से घिरे हिंदुस्तान ऑफिस के गेट पर...

इतनी व्यस्त और हाहाकारी दिनचर्या और  रातचर्या में बीजू आम सफाचट कब हो जाते, यह पता ही नहीं चलता था..लेकिन फ्रिज को खाली देखना अपने को गवारा नहीं था.. इसलिए उसको भरते रहने का इंतज़ाम अपना जुनून ...चालीस बीजू, तीन पानी वाले नारियल और आधा किलो मसूरपाक...

आगे फिर कभी...

7/6/18