गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

जनसत्ता-एक्सप्रेस का हॉल

सत्तासी के अप्रैल में लखनऊ नवभारत टाइम्स से विदा ले चंडीगढ़ जनसत्ता में...

एडिटोरियल हॉल एक्सप्रेस और जनसत्ता का एक ही..दस साल से अब तक उस पर इंडियन एक्सप्रेस का ही राज चल रहा था..पर बंटवारे के वक्त कोई खूनखराबा नहीं..

हॉल में घुसते ही दाहिनी दीवार से सटा जनसत्ता का कारोबार...सामने और उसके दाहिनी तरफ एक्सप्रेस का खेला..
दोनों की जनरल डेस्क आमने सामने न होकर थोड़ी तिरछी..तो जैसे मैं संस्करण प्रभारी के रूप में अपनी कुर्सी पर बैठूं तो एक्सप्रेस प्रभारी को देखने के लिये आंखों को दाहिनी तरफ हल्की सी ज़ुम्बिश देना ज़रूरी..

एक्सप्रेस वालों में कई बड़े नाम..संजीव गौड़ और निरुपमा दत्त और जगतार और प्रदीप मैगज़ीन खास तौर पर...तहलका वाले तरुण तेजपाल ने तभी एक्सप्रेस छोड़ टेलीग्राफ ज्वायन किया था..लेकिन उसकी मोटी सी खूबसूरत बीवी गीतन वहीं हमारे बीच..इंडिया टुडे के जाने माने फोटोग्राफर प्रमोद पुष्करणा की बीवी जया रिपोर्टर..

अब मुद्दे पर आया जाए...
प्रभारी की कुर्सी के बिल्कुल सामने की दीवार न देख कर अगर आप हल्का सा दाहिने जाएं तो बड़ी सी खिड़की और खिड़की से सटी मेज..मेज के पीछे कुर्सी और कुर्सी पर लावण्यमयी युवती विराजमान..सांवला रंग..कलफ लगी सूती धोती या साड़ी..
खबरों के तार छांटते एक दिन नज़र उठायी तो खिड़की वाली को ध्यान से देखा..अच्छी लगी..कई कई बार देखा..दो दिन बाद उधर पता चल गया कि कोई देखता है..भले ही नज़रों में मवालीपन न हो पर देखता तो है न..
तीसरे दिन माथे पर बड़ा सा लाल सूरज और मांग में सिंदूर..

लेकिन हमने देखना बंद नहीं किया..और क्यों बंद करूं....आंखों में प्रशंसा का ही तो भाव है न..

नवभारत टाइम्स की फिल्म समीक्षा और फिल्म लेखन की लोकप्रियता की भरपूर सुगंध चंडीगढ़ भी पहुंच गयी थी..सो, आदेश हुआ कि जनसत्ता में जारी रखा जाए..एक दिन सुरक्षा गार्ड के रूप में सरदार हरजिंदर सिंह को पकड़ आतंकवादियों के प्रिय ठिकाने मोहाली पहुंच गया पिक्चर देखने..वतन के रखवाले..लौट कर समीक्षा लिख छपने दे दी..

दो दिन बाद रैक पर रखे अखबारों को दो-तीन एक्सप्रेसी देख रहे..कुछ देर बाद वो मेरे पास आए..उनमें से एक बेहद हैंडसम युवक ने पूछा ..राजीव मित्तल आप ही हैं!!! मेरे हां कहते ही तपाक से हाथ मिलाया...गुरू मज़ा आ गया..ये थे प्रदीप मैगज़ीन...यानी उस युवती के पतिदेव..

अब युवती को देखना बंद कर दिया तो उधर से अक्सर अपनी तरफ देखते पाता..अब उन निगाहों में प्रशंसा का भाव..जय हो वतन के रखवालो..एक रात वैन में साथ हुआ..आप जलवा पर क्यों नहीं लिख रहे..नवभारत टाइम्स में लिख कर आ रहा हूं..ये थीं मुक्ता मैगज़ीन..जिनके टिफिन की प्रदीप के साथ कई बार हिस्सेदारी निभायी..



1/19/18