बुधवार, 1 अप्रैल 2020

मंटो के बॉम्बे में अंतिम दिन..

उन्हीं के शब्दों में....हिंदुस्तान आज़ाद हो गया था, पाकिस्तान आज़ाद हो गया था..लेकिन दोनों तरफ का इंसान दोनों आज़ाद मुल्कों में ग़ुलाम था..तास्सुब का ग़ुलाम, मज़हबी जुनून का ग़ुलाम, हैवानियत व बरबरियत का ग़ुलाम.

मैंने बॉम्बे टाकीज़ जाना छोड़ दिया था...अशोक कुमार और साउंड रिकार्डिस्ट वाचा आते साथ ले जाने को तो मैं बहाना कर देता...कई दिन ऐसे ही गुजरे..श्याम मुझे देखता और मुस्कुरा देता..कुछ दिन तक मैंने खूब शराब पी..फिर छोड़ ही दी..दिन भर सोफे पर गुमसुम पड़ा रहता..ध्याम स्टूडियो से आता और मजाक में कहता..क्यों ख्वाज़ा, जुगाली कर रहे हो..

आखिरकार जब कुछ समझ में न आया तो यही सोचा...चलें बॉम्बे से..श्याम की रात की ड्यूटी थी..मैंने असबाब बांधना शुरू कर दिया..सारी रात सामान समेटते बीत गयी..सुबह श्याम आया तो सिर्फ इतना ही पूछ..चल दिये ख्वाज़ा ? मैंने कहा..हाँ..

मेरी हां सुनते ही वो मेरे काम में हाथ बंटाता रहा...हंसता, खिलखिलाता श्याम..रुख़सत होने का वक़्त आया तो उसने अलमारी से ब्रांडी की बोतल निकाली.. दो पेग बनाये..एक मुझे दे कर बोला--हिपटुल्ला..

जवाब में मैंने कहा--हिपटुल्ला...उसने कहकहे लगाते हुए मुझे सीने से भींच लिया..और बोला-- सुअर कहीं के..
मैंने अपने आंसू रोके और बोला---पाकिस्तान के....
श्याम ने पुरखुलूस नारा बुलंद किया--ज़िंदाबाद पाकिस्तान..
ज़िंदाबाद हिंदुस्तान कह कर मैं नीचे चला गया, जहां ट्रक वाला मेरी राह देख रहा था..

बंदरगाह तक श्याम मेरे साथ गया.. जब जहाज चलने को हुआ.. श्याम ने मेरा हाथ दबाया और नीचे उतर बगैर मुड़े बंदरगाह से बाहर चला गया..
-------
लाहौर में मंटो के जीवन के अंतिम दिन..

अप्रैल की 23 या 24 थी..मुझे अच्छी तरह याद नहीं है--मैं पागलखाने में शराब छोड़ने के सिलसिले में ज़ेरे-इलाज था..कि श्याम की मौत की खबर अख़बार में पढ़ी..

श्याम की मौत की खबर पर मुझे विश्वास नहीं हुआ..फिर मैंने पास के बेड पर लेटे पागल से कहा---जानते हो, मेरा एक निहायत ही अज़ीज़ दोस्त मर गया है...
उसने पूछा कौन..
ग़म में डूबी आवाज़ थी मेरी--श्याम..
कहाँ..यहां..पागलखाने में..
मैंने कोई जवाब नहीं दिया..


5/11/18