बुधवार, 1 अप्रैल 2020

राम का वनवास जाना वशिष्ठ की साज़िश थी

आगरा के कल्पतरु अखबार के दफ्तर में मथुरा के उस महंत से मुलाकात कर लगा जैसे दूसरा हरिमोहन झा मिल गया हो.. एक मंदिर का महंत हो कर भी वो व्यक्ति क्रांतिकारी निकला..

उनसे हुई बातचीत के आधार पर ही आगे बढ़ रहा हूँ...विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच कभी खत्म न हुए जातिगत वैमनस्य ने सबसे बड़ा नुकसान राम को पहुंचाया...

अब कड़ियाँ जोड़ते चलिये.. विश्वामित्र किशोर राम और लक्ष्मण को घने जंगलों में रह रहे ऋषि मुनियों की अनार्यों से रक्षा के लिए दशरथ से मांगते हैं..दशरथ विश्वामित्र के बहुत प्रशंसक थे..उन्होंने तुरंत हामी भर दी..राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेजना वशिष्ठ को कतई रास नहीं आया..क्योंकि सबसे बड़ा बेटा होने के नाते राजा तो राम को ही बनना था..एक भावी राजा को दुश्मन के हाथ में जाता देख वशिष्ठ भन्ना गए...

विश्वामित्र दोनों राजकुमारों को अस्त्र शस्त्र विद्या सिखाते हुए आगे बढ़ते गए..यह काम  वशिष्ठ कदापि न कर पाते..हालांकि घातक हथियारों की एक बड़ी रेंज उनके पास भी थी..

जंगलों में जगह जगह आश्रमों में तीनों ठहरते चलते..इसके चलते राम और विश्वामित्र के चेला गुरु के रूप में प्रगाढ़ सम्बंध बने..अपने जासूसों ये सब सुनकर भविष्य को लेकर वशिष्ठ की परेशानी बढ़ने लगी..

नेपाल की तराई के घने जंगलों में राम और लक्ष्मण का कई बार राक्षसों से युद्ध हुआ..जिसमें सुबाहु तो मारा ही गया.. मारीच को भागना पड़ा और रावण की बहन ताड़का की नाक काट दी दोनों भय्यों ने..कुल मिला कर वो क्षेत्र राम लक्ष्मण की वीरता से गूंजने लगा...

रास्ते में ही विश्वामित्र को जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर की जनकारी की मिली..जिसमे आर्यवर्त के सभी बड़े राजाओं ने हिस्सा लिया..मिथिला का साम्राज्य उस समय पूरी शोहरत पर था..और उस शोहरत के आगे राजा दशरथ कहीं नहीं ठहरते थे...

विश्वामित्र ने इस मौके को अपने पक्ष में भुनाने और वशिष्ठ को पछाड़ने के रूप में लिया..वह दोनों राजकुमारों को लेकर जनकपुरी पहुंचे..राजा जनक ने विश्वामित्र का समुचित सत्कार किया और उन्हें अपने राजभवन में ठहराया..राजा जनक ने उन दोनों राजकुमारों के बारे में पूछा तो विश्वामित्र ने शानदार पीआर शिप निभाई और दोनों का और अयोध्या और और राजा दशरथ का जम कर गुणगान किया..जनक को सीता के लिए वर के रूप में राम उपयुक्त पात्र लगे..और इस तरह स्वयंवर की लिस्ट में राम का नाम भी चढ़ गया..

आखिरकार राम ने परशुराम का धनुष तोड़ा, सीता ने राम को वरा.. जिसके चलते दशरथ, राम और अयोध्या की कीर्ति चारो ओर फैल गयी, जिससे वशिष्ठ की सौतिया डाह नाग का फन बन लहराने लगी.

अब काफी बुढ़ा चुके दशरथ ने राम को गद्दी सौपनी चाही, जिसका विरोध भरत की मां केकई ने भी नहीं किया..यहां से शुरू होता है वशिष्ठ की साज़िशों का खुला खेल...राम राजा बन जाते तो विश्वामित्र के हाथ में सत्ता के सारे सिरे आ जाते..राम कमउम्र थे, ज़ाहिर है हर बात में विश्वामित्र की चलती..और वशिष्ठ का काम तीज त्योहार में रानियों को पूजा कराने भर का रह जाता..

तो भाई ने राज्याभिषेक की साइत ही गलत निकाल दी..यानी वो घड़ी, जो राम के लिए विनाशकारी थी.. फिर वशिष्ठ ने केकई की मुहंलगी मंथरा के कान में फूंक मारी... मंथरा ने केकई को राजमाता बनने के सपने दिखाए और केकई ने किन्हीं पुराने उपकार में दशरथ से मिले दो वरदान राजा से मांग लिए.. भरत का राज्याभिषेक और राम को वनवास...

जारी...
4/15/18