आवाज़ दी है आज इक नज़र ने या है ये दिल को गुमाँ दोहरा रहीं हैं जैसे फ़ज़ायें भूली हुई दास्ताँ जीवन में कितनी वीरानियाँ थी छायी थी कैसी उदासी सुनकर किसी के कदमों की आहट हलचल हुई है ज़रा सी सागर में जैसे लहरें उठीं हैं टूटी हैं खामोशियाँ दोहरा रहीं हैं जैसे फ़ज़ायें भूली हुई दास्ताँ
अब याद आया कितना अधूरा अब तक था दिल का फ़साना यूँ पास आके दिल में समा के दामन न हम से छुड़ाना जिन रास्तों पर तेरे कदम हों मंजिल है मेरी वहाँ दुनिया से कह दो न हम को पुकारे हम खो गये हैं यहाँ 2/19/18