सिर के नीचे कटा हाथ और जीडीपी
अब हमें भारत की जीडीपी तय करने के मापदंड बदलने होंगे तभी हम अगले पांच साल में घरेलू सकल उत्पाद दर 27 फीसदी, बल्कि 30 फीसदी तक पहुंचा पाएंगे..जबकि इस दौरान दुनिया भर के देशों की जीडीपी दर दस फीसदी भी हुई तो बहुत बड़ी बात होगी..
जीडीपी को अनर्थशास्त्र की भाषा में कहते हैं खुजली..इस खुजली को अगर आपने मूली के पत्ते रगड़ या अन्य घरेलू नुस्खे से ठीक कर लिया तो जीडीपी गई तेल लेने.. लेकिन यही खुजली लेकर अगर आप एक आंख अक्सर बंद रखने वाले बाबा रामदेव के शफाख़ाने
जाते हैं तो उसकी दवाइयों से आपको आराम मिले न मिले लेकिन लंगोटधारी बाबा की दवाओं की बिक्री जीडीपी का कटोरा लबालब कर देगी..
इसके अलावा किसी सरकारी अस्पताल में कोई मरीज ऑपेरशन के बाद अपने ही कटे हाथ पर सिर टिकाए सो रहा हो तो उसकी फोटो खींच कर, उस फोटो के बड़े बड़े होर्डिंग बनवा कर देश भर में लगाये जाने चाहिए..इससे देश के सरकारी अस्पतालों को तोड़े बगैर उन पर सुखानी, रामपुरिया,
अबेजानी, टिकरिया जैसे बड़े औद्योगिक घरानों के बोर्ड टांगने में बहुत आसानी होगी..जो पर्चा पहले एक रुपये में 15 दिन के लिए बनता था, 15 रुपये में एक दिन का बनेगा..
जारी
एक हरा भरा पेड़ आपको क्या देता है..वास्तव में कुछ भी नहीं..आंखों को तरावट या कथित तौर पर वायु की स्वच्छता..यही गलत सलत धारणा इस देश के विकास की दुश्मन है..
बहुत सीधा सादा सिद्धान्त है कि खड़ी वस्तु से जीडीपी नहीं बढ़ती..हरियाली, नदी, तालाब, जंगल ये सब भी जीडीपी के दुश्मन हैं..
एक हरा भरा पेड़ कभी जीडीपी नहीं जीडीपी नहीं बढ़ेगी लेकिन अगर आप उस पेड़ को काट देते हैं तो
जीडीपी बढ़ती है क्योंकि पेड़ को काटने के
बाद पैसे का आदान प्रदान होता है, पर पेड़ अगर
खड़ा है तो तो कोई इकनोमिक activity नहीं
होती तो जीडीपी भी नहीं बढ़ती..
यानि पेड़ काट कर दुनिया को जहन्नुम बना जीडीपी बढ़ाइये..
अगर नदी में साफ पानी बह रहा है
तो जीडीपी नहीं बढ़ती पर अगर आप नदी को
गंदा करते हैं तो जीडीपी तीन बार बढ़ती है..
पहले नदी के पास उद्योग लगाने से जीडीपी बढ
गयी, फिर नदी को साफ़ करने के लिए हज़ार
करोड़ का प्रोजेक्ट ले के आए, जीडीपी फिर बढ़
गयी, फिर लोगों ने नदी के दूषित पानी का इस्तेमाल
किया बीमार पड़े, डॉक्टर के पास गए डॉक्टर ने
फीस ली, फिर जीडीपी बढ़ गयी।
जब आप टूथपेस्ट खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है परंतु
किसी गरीब से दातुन खरीदते हैं तो GDP नहीं
बढ़ती...
जब आप किसी बड़े अस्पताल में जाकर 500 रु.
की दवाई खरीदते हैं तो GDP बढ़ती है परंतु आप
अपने घर मे उत्पन्न गिलोय.. नीम या हल्दी चूने से
अपना इलाज करते हैं तो जीडीपी नहीं बढ़ती..
जब आप घर मे गाय पालकर दूध पीते हैं तो GDP
नहीं बढ़ती परंतु पैकिंग का मिलावट वाला दूध
पीते हैं तो GDP बढ़ती है..
जब आप अपने घर में सब्जियां उगा कर खाते हैं तो
GDP नहीं बढ़ती परंतु जब किसी बड़े AC माल में
जाकर 10 दिन की बासी सब्जी खरीदते हैं तो
GDP बढ़ती है...
जब आप गाय की सेवा करते हैं तो GDP
नहीं बढ़ती परंतु जब कसाई उसी गाय को काट
कर चमड़ा और मांस बेचते हैं तो GDP बढ़ती है..
रोजाना अखबार में लिखा होता है कि भारत
की जीडीपी 8.7 % है ... कभी कहा जाता है कि
9% है ... प्रधानमंत्री कहते हैं कि हम 12 %जीडीपी
हासिल कर सकते हैं...पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम कहते थे की हम 14 % भी कर सकते हैं..
रोजानाआप जीडीपी के बारे में पड़ते है और आपको लगता है कि जीडीपी जितनी बढे़गी.. देश की
तरक्की उसी रफ़्तार से बढ़ेगी...
मान लीजिये कि एक हरा भरा पेड़ मौजूद है तो जीडीपी नहीं बढ़ेगी लेकिन अगर आप उस पेड़ को काट देते हैं तो
जीडीपी बढ़ती है क्योंकि पेड़ को काटने के
बाद पैसे का आदान प्रदान होता है, पर पेड़ अगर
खड़ा है तो तो कोई इकनोमिक activity नहीं
होती तो जीडीपी भी नहीं बढ़ती..
अगर भारत के सारे पेड़ काट दिये जाएं तो
भारत की जीडीपी 27 % हो जाएगी जबकि आज
करीब 7 % है...
यानि पेड़ काट कर दुनिया को जहन्नुम बना जीडीपी बढ़ाइये..
अगर नदी में साफ पानी बह रहा है
तो जीडीपी नहीं बढ़ती पर अगर आप नदी को
गंदा करते हैं तो जीडीपी तीन बार बढ़ती है..
पहले नदी के पास उद्योग लगाने से जीडीपी बढ
गयी, फिर नदी को साफ़ करने के लिए हज़ार
करोड़ का प्रोजेक्ट ले के आए, जीडीपी फिर बढ़
गयी, फिर लोगों ने नदी के दूषित पानी का इस्तेमाल
किया बीमार पड़े, डॉक्टर के पास गए डॉक्टर ने
फीस ली, फिर जीडीपी बढ़ गयी।
अगर आप कोई कार खरीदते हैं, आपने पैसा दिया
किसी ने पैसा लिया तो जीडीपी बढ गयी..
आपने कार को चलाने के लिए पेट्रोल ख़रीदा
जीडीपी फिर बढ़ गयी, कार के दूषित धुएं से
आप बीमार हुए, आप डॉक्टर के पास गए, आपने
फीस दी उसने फीस ली और फिर जीडीपी बढ़
गयी। जितनी कारें आएंगी देश में
उतनी जीडीपी तीन बार बढ़ जाएगी...
इस देश में 4000 से ज़्यादा कारें हर साल खरीदी जाती हैं..25000 से ज्यादा मोटर साइकल खरीदी जाती हैं और सरकार भी इस पर सारा ज़ोर देती है क्योंकि
यह एक शानदार तरीका है देश की जीडीपी बढ़ाने का.
हर बड़े अख़बार में और चैनल पर कोकाकोला और पेप्सीकोला का विज्ञापन छाये रहते हैं और ये भी सब जानते हैं कि ये दोनों पेय कितने खतरनाक और जहरीले हैं सेहत के लिए ... पर फिर भी सब सरकारें चुप हैं और अपनी जनता को ज़हर पीता देख रही हैं
क्योंकि जब भी आप कोकाकोला पीते हैं देश की जीडीपी दो बार बढ़ती है ।
पहले आपने कोका कोला ख़रीदा पैसे दिये..देश का जीडीपी बढ गया, फिर पीने के बाद बीमार पड़े .. डॉक्टर के पास गए, डॉक्टर को फीस दी.. जीडीपी दोबारा बढ़ गयी ।
आज अमेरिका में चार लाख लोग हर साल मरते हैं
कारण है उनका भोजन...क्योंकि जो जंक
फ़ूड है और कार्बोनेटेड ड्रिंक्स है .. उसके सेवन से
मोटापा और बीमारी बढ़ती है... जिसके चलते आज
62 % अमेरिकी क्लीनिकली मोटापे के शिकार हैं और हमारे देश में 62 % लोग कुपोषण का शिकार हैं। ये भी जीडीपी बढ़ाने का एक तरीका है , जितना ज्यादा प्रदूषण खाने में होगा उतना ज्यादा जीडीपी बढ़ता है।
पहले तो फ़ूड इंडस्ट्री की तेजी से जीडीपी बढ़ी
उसके साथ दवा का बाज़ार बढ़ा..फिर
जीडीपी बढ गयी ...
फिर इसके साथ इंश्योरेंस का बाज़ार बढ़ा..
ये तीनों बाज़ार आपस में जुड़े हुए हैं इसीलिए आज
इंश्योरेंस .. इंडस्ट्री फ़ूड
में पैसा लगा रहा है क्योंकि आप जितना ज्यादा
ख़राब फ़ूड खायेंगे तीनों बाज़ार तेजी से फैलेंगे.
और तभी जीडीपी दौड़ेगी..
अब आपको जीडीपी बढ़ानी है या घर में
खाना बनाना है ! घर में खाना बनाने से
जीडीपी नहीं बढ़ती।
इस मायाजाल को समझें...
अमेरिका में आज करीब चार करोड़ लोग भूखे पेट
सोते है यूरोप में भी चार करोड़ लोग भूखे सो रहे
हैं..भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 32
करोड़ लोग भूखे सोते हैं..
अगर जीडीपी विकास का मापदंड होती तो अमेरिका में भूखे नहीं होने चाहिये थे..पर अमेरिका और
यूरोप में भूखों की संख्या लगातार बढ़ रही है..
भारत में भी जीडीपी के बढ़ने के साथ साथ भुखमरी तेजी से बढ़ रही है..
किसी देश की सम्पत्ति या समृध्दि जीडीपी
से नहीं, बल्कि जीएनपी से बढ़ती है। जीडीपी
का अर्थ हुआ ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट -- आपके
देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर होने वाला
कुल प्रोडक्शन। फिर भले ही एक्साइड जैसी
कम्पनियां प्रोडक्शन यहां करती हों और
मुनाफा अपने देश में ले जाती हों, और भोपाल
गैस कांड की जिम्मेदारी से बच निकलती हों-
लेकिन जीडीपी की ओर टकटकी लगाने वाले
अर्थवेत्ता इसी को विकास कहते हैं।
.
इससे उल्टा जीएनपी का शास्त्र है। ग्रॉस नेशनल
प्रॉडक्ट मापते समय दूसरे देश में आए इन्वेस्टर ने
कितनी लागत आपके देश में लगाई उसे नहीं जोड़ना,
बल्कि जो मुनाफा वे अपने देश में ले गए थे उसे
घटाते हैं और आप के देश के नागरिकों ने यदि
विदेशों में इन्वेस्ट (निवेश) किया है और मुनाफा
कमाकर देश में भेजा है, तो उसे जोड़ते हैं। इस
प्रकार आपकी आर्थिक क्षमता की असली
पहचान बनती है जीएनपी से न कि जीडीपी से।
फिर भी हमारी रिजर्व बैंक, हमारे सारे
अर्थशास्त्री और हमारी सरकारें हमें जीडीपी
का गाजर क्यों दिखाती हैं!!! क्योंकि
गाजर या मूली बिना सींग वाले प्राणी को दिखाई जाती
है।
3/24/18