सोमवार, 30 मार्च 2020

मैं न भूलूंगा -1

पलटना मत पाटिल *
राजीव कुमार मनोचा 

अलविदा रवीन्द्र पाटिल। सलमान ख़ान के ख़िलाफ़ गवाही दे कर मर तो तुम बहुत पहले ही गए थे, आज तुम्हारी उठावनी भी हो गई। साथ ही समाप्त हो गया 13 साल से हो रही ज़िल्लत और बेइज़्ज़ती का अध्याय। इस देश के दीवानों का चहेता सितारा सलमान बरी हुआ और तुम्हें अपनी जुर्रत और दुस्साहस का ईनाम मिल गया। क्लीवों और कापुरुषों से भरे समाज में अपना समाजी और सरकारी फ़र्ज़ निबाहने चले थे तुम। और क्या अंजाम होना था भला ? अब क़रार आया तुम्हारी भटकती रूह को !!

याद नहीं था तुम्हें या आदर्शों की रौ में भूल गए थे। चेलों, चमचों, भांडों और मानसिक ग़ुलामों के बीच जन्मे थे तुम। ये मर्दों वाले तेवर कहाँ से ले आए ? शायद मराठा होने का भूत सवार था ! क्यों ? तभी तो उंगली उठा दी सलमान ख़ान जैसी हस्ती पर। यही नहीं एफ़ आई आर भी दर्ज करवा डाली। क्या सोचा था, न्याय के नये पैमाने स्थापित कर दोगे तुम ! लो हो गया न्याय। सलमान सम्भावित सज़ा से ही नहीं बल्कि सारे आरोपों से भी बरी हो गए। जज साहब ने यह तक नहीं बताया कि कौन उस दिन फुटपाथ पर सोये बेघर मासूमों पर गाड़ी चढ़ा गया। शायद कोई अदृश्य शैतान रहा होगा !

हद कर दी इन्साफ़ करने वालों ने। तुम्हारे अस्त्र तुम्हीं पर चला डाले। 5 साल की सज़ा वाला सेशन्स कोर्ट का पिछला निर्णय पलट दिया और टिप्पणी की- कॉन्स्टेबल रवीन्द्र पाटिल जैसा व्यक्ति भरोसे के लायक नहीं। 28 सितम्बर 2002 को दुर्घटना की रिपोर्ट करता है और 3 दिन बाद मेडिकल रिपोर्ट आने पर कहता है कि सलमान नशे में धुत थे। तुम्हें क्या लगा था, अधूरी मेडिकल रिपोर्ट पर तुम्हारे एतराज़ को मान लिया जाएगा ! उल्टा तुम्हें बेभरोसा गवाह क़रार दे दिया गया। यहीं इसी माहौल में पले बढ़े थे न तुम ! फिर क्यों भूल गये कि यहां झूठ में सच जोड़ने वाले को सबसे बड़ा झूठा माना जाता है। जैसी पब्लिक, वैसी पुलिस और वैसे ही इन्साफ़ करने वाले। 

तुम्हारे जिन पुलिस वाले साथियों ने पैसा खा कर तुम पर दसियों दबाव डाले, दरबदर करवाया, फिर कोर्ट के सामने उलटा तुम्हीं को रुस्वा करवाया, अस्थिर दिमाग़ वाला अविश्वसनीय गवाह साबित किया, नौकरी छीनी, पहले भूख-नंग और फिर टीबी जैसी जानलेवा बीमारी में धकेल अंततः मृत्यु का ग्रास बनवा दिया, ज़रा देखो उनकी कितनी बड़ी जीत हुई। उस से भी बड़ी जीत हुई मीडिया के बनाये नेकी और ईमान के फ़रिश्ते सलमान की। वह सलमान जिसने तुम जैसे असली जवांमर्द को अपने धनबल और रसूख़ से बेचारा बना के रख दिया, वही सलमान आज भी हमारे नौजवानों के लिए मर्दानगी का प्रतीक है और तुम्हें रवीन्द्र पाटिल, कोई जानता तक नहीं। वह शेरदिल पुलिसवाला जो चौतरफ़ा दबाव और यातनाएं झेल कर भी अपने बयान पर क़ायम रहा। अंत तक कहता गया कि 5 फुटपाथ नशीनों को कुचलने वाली गाड़ी नशे में धुत सलमान ख़ान ही चला रहा था। चार के अंग टूटे और एक फुटपाथी ' नूर उल्लाह ' मारा गया। भलि भांति जानता था पाटिल यह सच क्योंकि सलमान की बग़ल में बॉडीगार्ड की हैसियत से बैठा इस गुनाह का साक्षी था वह।

किस मुहल्ले में पले थे तुम रवीन्द्र पाटिल ! हमें क्या लेना है, माल अंटी करो और मस्त रहो, समरथ को नहीं दोष और ऐसे ही जाने कितने जुम्ले घर घर गली गली में चलते हैं यहाँ। भई कहाँ खोये रहे तुम !! नेताओं और अभिनेताओं के पीछे पगलाया हुआ मुल्क है यह। जो लोग इनके लिए हाथ की नसें काटने से लेकर ख़ुदकुशी तक कर लेते हों, वे इनके लिए दुआ मांगेगे या किसी पुलिसिये पाटिल के लिए ! अब भगवान भी भला क्या करता, इन्हीं के साथ हो लिया। आख़िर उसकी दाल-रोटी-प्रसाद भी ये लोग ही देखते हैं, तुमसे भुक्कड़ के पास तो अपनी दवाई तक के पैसे नहीं थे। 

अब एक समझदारी का काम करो। अपनी अशांत आत्मा को स्थिर करते हुए एक संकल्प लो, आने वाले किसी जन्म में इन ज़नखों, क्लीवों और कापुरुषों से भरे समाज में पलट के आने की भूल नहीं करोगे। तुम सच्चे जवांमर्द और पुरुषार्थी थे, सिर्फ़ 33साल जी कर ही साबित कर गए। नेताओं और अभिनेताओं का पिछलग्गू हो चुका, भ्रष्टतंत्र का पर्याय बन गया यह समाज तुम्हारे योग्य नहीं...

...जहां सच बोलने के अपराध में तुम्हें छुप छुप के रहना पड़े, घुट घुट के जीना पड़े और तिल तिल के मरना पड़े।

8/26/18