शनिवार, 28 मार्च 2020

वसीयत...

पंद्रह साल पहले ...वो मुज़फ्फरपुर के दिन थे..हर समय हर किसी से मरने-मारने को तैयार...सवा साल की खामोशी के बाद लिखना शुरू हो चुका था...बंधा तोड़ लेखन..दुनिया भर की निगाह में नामाकूल यह शहर इतना भा गया था कि दिल्ली जाता 15-20 दिन की छुट्टी लेकर और भाग आता एक हफ्ते में..(आप में से किसी ने अगर विभूतिभूषण बंदोपाध्याय की आरण्यक पढ़ी हो तो मेरा जुनून समझ में आ जायेगा, जिसका कोलकातावासी नायक पूर्णिया के पास नेपाल की तराई वाले घने जंगलों में इस कदर रम गया था कि दो-तीन साल में कोलकाता जाता भी तो घबरा कर भाग खड़ा होता..)

सुनसान मोतिहारी रोड पर बने हिंदुस्तान के ऑफिस से रात के किसी भी पहर निकल कर कांटी की तरफ10-15 किलोमीटर का चक्कर अक्सर लगता..उस चंद्रमा ग्रह वाले रास्ते पर पैदल चलने वाला नाक की सीध में तो नहीं ही कदम बढ़ा सकता था, तो सोचिये स्कूटर कैसे चलता होगा..और फिर उन्हीं रास्तों से जाड़ों के घने कोहरे में सुबह घर लौटना सारी इंद्रियों को एकाग्र कर देता..

पांच साल के मुज़फ़्फ़रपुर प्रवास में अपनी एक ही पहचान थी, वो पहचान थी भारी भरकम बैग..पटना से आये सर्कुलेशन हेड विजय सिंह ने जब यह पूछा कि इस बैग में क्या भरे रहते हैं.. तो जवाब था अपने क़फ़न और दफ़न का सामान..

खैर छोड़िए, अपने पास तो किस्से ही किस्से हैं..आइये उस वसीयत पर, जो 2004 की गर्मियों में लिखी गयी थी..और आज भी उसमें जगह को छोड़ कर और कोई बदलाव नहीं है...

वसीयत लिखी आशोक सिंह के नाम है..और गवाह के तौर पर वर्तमान में जदयू नेता प्रगति मेहता (मुंगेर के भावी सांसद)  और रक्सौल में एक होटल के मालिक मनीष कुमार सिंह..ये तीनों तब मेरी न्यूज़ एडिटरी झेलते थे..

बंधु, आपसे गुजारिश है कि परदेस में पड़े मुझ नाचीज़ को कुछ हो जाये तो मेरा शरीर यहां के मेडिकल कॉलेज को सौंप दिया जाए..मुझे दफ़नाया या जलाया कतई न जाये..मेरी आँखें भी दान खाते में डाल दी जाएं..ब्रह्मपुरा स्थित मेरे मकान मालिक को किराया मेरे मरने की तिथि को ध्यान में रखते हुए दें...बिजली-पानी किराए में शामिल है..मोतीझील स्थित सेंट्रल बैंक में अपना खाता है, जहां मेरा इन्कमटैक्स रिटर्न जमा करवा दें..मेरा लैंड लाइन फोन महीनों से नाकारा पड़ा है..तो उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाए..मोबाइल फोन का बिल कंपनी जमा करती है..

विशेष... शहर के जितने श्वानों को खिलाया जा सकता है, उनको ताजा गोश्त और साथ में डबल रोटी..भरपेट खिलाई जाए..गायों को 15-15 रोटी और चिड़ियों को बाजरा चुकाया जाए..

और हाँ.. कोई तेरहीं नहीं, कोई भोज नहीं.. यह सब करने के बाद ही मेरे घर वालों को सूचित किया जाए..इन सब कामों पर जो खर्च आये, उसके लिये चंदा कर लें..अस्तु..
10/12/18