रांची के वो चालीस दिन
फरवरी 2003 के पूर्वार्द्ध में .. मुज़फ़्फ़रपुर हिंदुस्तान के ऑफिस में रात्रि जागरण के बाद दिन के दस बजे ब्रह्मपुरा चौक की संजय गली के खूबसूरत टैरेस वाले कमरे में रजाई के अंदर गहरी नींद में लीन...तभी लैंडलाइन घनघनाया.....दुरुस्त आवाज़ में हेलो..
सर, साहब से बात कीजिये..राजीव, आप रांची जाना पसंद करेंगे!! Yc अग्रवाल की छक्के छुड़ा देने वाली आवाज़..लेकिन अपन हमेशा की तरह निर्भय और निर्विकार...बिल्कुल जाऊंगा..कब जाना है..HT के कई प्रदेशों के माई-बाप Yc कई बार मेरे इस निर्भय अंदाज़ से अचकचा जाते और मुझे याद दिलाते कि वो कौन हैं..
लेकिन उस दिन मीठे मीठे बात की..राजीव, आप तैयार रहो, दो चार दिन में पटना आ जाइये, यहीं से रांची जाएं...वहां HT गेस्ट हाउस में आप ठहरेंगे..यहां कौशल वर्मा के संपर्क में रहें...
उनसे बात करने के तुरंत बाद पटना के संपादक नवीन जोशी को खड़काया..क्योंकि किया धरा उन्हीं का था..मेरी हाय हाय सुनी तो जोर से हंसे..अरे जाओ तो सही...तुम्हें रांची पसंद आएगा...
अब मुज़फ़्फ़रपुर ऑफिस में चिक चिक बूम बूम...अरे ऐसे कैसे चले जाएंगे..यहां का काम कैसे होगा..वगैरह..सुकान्त जी भन्नाए...अपना वही बिजनौरी अंदाज़.. आप जानो जी..सुकान्त जी ने तुरंत मृणाल जी को फोन लगाया.. उनकी हंसी सुनी...हां राजीव को कुछ दिन के लिए रांची जाना है..अब सुकान्त जी YC को गुहारे...वहां से भी वही जवाब..
सब कुछ फिटफाट कर एक ठंडी सुबह टैक्सी से पटना....और पटना में नवीन जोशी के आवास पर कमर सीधी कर गौतम बुद्ध मार्ग, पटना ऑफिस में रांची, संपादक हरिनारायण सिंह, रांची हिंदुस्तान, जीएम चटर्जी दादा, गेस्ट हाउस की सारी जानकारी हासिल कर रात को ट्रेन में सवार...
रांची में चालीस दिन
पटना से ट्रेन की स्लीपर बोगी का रात का सफर रांची की सोच कर कितना भी आह्लादकारी क्यों न रहा हो..सुबह सात बजे रांची स्टेशन पर जाड़ों में पसीने आ गया..क्योंकि रांची हिन्दुस्तान के सम्पादक हरिनारायण सिंह ने मेरी आमद को ही औकात दिखाने की सोच ली थी..तभी इस नई बहू को लेने किसी को भेजा ही नहीं सरऊ ने..HT का hr भी उसी के रंग में रंगा हुआ...
और वैसे भी उस समय सिंह महाशय झारखंड के सत्ता गलियारे में दलाल शिरोमणि की हैसियत रखते थे, मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भी चाहते तो मुझे स्टेशन पर लेने कोई न आता..
कुली को समान पकड़ा कर बाहर आया और ऑटो कर सीधे उस जगह (कोकर) पहुंच गया, जहां अखबार का दफ्तर था..वहां उस समय झाड़ू लग रही थी..एक चपरासी दिखा तो उससे संपादक को फोन लगवा कर दहाड़ मारी..हरिनारायण तुरंत समझ गए कि धूमकेतु आ टपका है..उन्होंने चपरासी को बोला कि साहब को कांके गेस्ट हाउस पहुंचाओ..
खैर, एक घंटे की झायींझप्प के बाद अपने को HT गेस्टहाउस का शानदार सुख नसीब हुआ...ग्यारह बजे शरीर पर नफीस कपड़े और पेट में अन्न का दाना डाल ऑफिस की गाड़ी से हिंदुस्तान कार्यालय में...
वहां राजा, वज़ीर, मंत्री, संतरी, मुसाहिब, चपरासी और होने वाले मित्रों-अमित्रों से मेल मुलाकात कर सूंघा सांघी की और हालात का जायज़ा लिया, क्योंकि अब रांची अपना आशियाना और कर्मस्थली बनने जा रही थी..
ऑफिस में यह तो लग ही गया कि जो कुछ है हरिनारायण सिंह है...दिल्ली में बैठीं मृणाल पांडे और पटना के सर्वेसर्वा Yc अग्रवाल को भूल इस पांच फुटे को खुदा मान लो, तो मज़े में रहोगे...यह तो लेकिन दिमाग समझा रहा था न..उस कमबख्त दिल का क्या करूं जो खुदा को ही खुदा नहीं मानता...
जारी....
10/17/18