हबीब वली मोहम्मद के साथ 1011 रातें
चंडीगढ़ में एक बरसाती दोपहर प्रमोद कोंसवाल के घर में प्रवेश करते ही टेपरिकॉर्डर पर गाने की आवाज़ ने पैरों को जकड़ लिया.......यह कौन है....बैठ कर सुनो.....बैठते ही वोदका का पैग.....लेकिन यहां तो पहले से ही मदहोश......गाना ख़त्म हुआ....पता चला पाकिस्तानी गायक हबीब वली मोहम्मद.....
आवाज में हल्का सा मुकेशपन....कोई सिलवट नहीं......मुरकी तो बिल्कुल ही नहीं... खरज मुकेश से ज्यादा....साज के नाम पर सिर्फ हारमोनियम और सारंगी.....पता चला कि त्रिनेत्र जोशी पिछले दिनों चीन गये थे....वहीं किसी घरेलू कार्यक्रम में वली को टेप कर लाए और कई ईष्ट मित्रों को उस आवाज का रसास्वादन कराया....
एक कॉपी अभी का अभी दो...तुरंत मिल गयी.....जब तक घर में, तो सिर्फ वली की आवाज....रात को ऑफिस से लौटने के बाद 17 सेक्टर जाने वाली बिल्कुल सुनसान सड़क पर अपन वली बन जाते.....बिल्कुल पागल बना दिया था इस आवाज ने....कानपुर में पागलपन सिर पर चढ़ बैठा..
बस ने रेलवे स्टेशन के पास उतारा..रिक्शा कर मूलगंज चौराहा और नवीन मार्केट होते हुए....कैन्ट रोड पर बहुत बड़े परिसर में स्टेट बैंक .....उसके बगल से नीचे उतरती सीढ़ियां......जमीन के 10-12 फुट अंदर पहले एक कमरा..फिर एक और...उसके बगल में हॉल....सम्पादकीय.....उसी में किनारे छोटा सा कैबिन.....स्वतंत्रभारत..
रात को स्टाफ के ज्यादातर मेस्टन रोड के मिश्रा लॉज में...अपना भी बिछावन....
रात दो बजे तक लोकल डेस्क......एक रात रिपोर्टर धीरेन्द्र श्रीवास्तव ने वली मोहम्मद को गुनगुनाते क्या सुन लिया..धरना दे दिया..रात को लॉज पहुंचते ही ओल्ड मोंक खोल दी....खाली करने के बाद मेस्टन रोड की गलियों में किसी दुकान के बाहर तख्ते पर बैठ कर इल्तिजा...शुरू हो जाइये....
कानपुर आने के बाद अपने पास भी मात्र दो ही चीजें थीं....सीने में चंडीगढ़ की यादें और गले में वली.....तीन पैग अंदर होते ही दोनों जोर मारने लगे ....तो रात को तीन घंटे उन पतली गलियों में वली साहब जलवा बिखेर रहे..दो-चार जन तो उसी रात जमा हो गए...
अगली रात कई ठेले वाले...खोमचे वाले....कबाब-बिरियानी बेचने वाले ......चूड़ी-बिंदी-टिकुली बेचने वाले वहां जमा......पिछली रात का गाया फिर से गवाया गया....रात भर तरन्नुम में .....छुट्टी वाले रोज उनमें से कई लॉज में भी पधार गये.....भाईजान यहीं पर कुछ हो जाए....एकाध के हाथ में बोतल भी.....तो कबाब और बिरियानी भी.......एक महीने तक छाये रहे वली साहेब .....
नए साल पर दिल्ली निकल गया... दस दिन बाद लौटा तो ऑफिस में नया चेहरा.. जिसके आने की चरचा कुछ दिन से चल रही थी, यही है की सोच कर हाथ आगे बढ़ा कर नाम बताया..अगले ने खड़े हो कर गर्मजोशी दिखायी और एक ठहाका---तो तुम हो....यार जबसे आया हूं तुम्हारी इतनी बुराई सुन चुका हूं सभी से कि तुमसे मिलने की तमन्ना जोर मार रही थी..
संजय द्विवेदी...दिल्ली संडे मेल से.. शहर उसका भी कानपुर ही....तुरंत पटरी बैठ गयी। घर कैसा लिया जाए पर एक सुझाव अपना भी.....चाहे कुछ हो न हो...टैरेस शानदार हो..एक शाम ऑफिस पहुंचते ही.......घर ले लिया है...बिल्कुल तुम्हारे मन का है......अब मेरे साथ रहो....दूसरे दिन घर देखा तो तबियत फड़क उठी..
उबासी मारते कम्पनी बाग में तीसरे माले पर एक कमरा और पूरी छत.....सड़क पार के मकानों के पीछे गंगा की धारा....आए दिन बहार के...रुको रुको.....संगीत के नाम पर तुम्हारे पास क्या है..मैं उसके बिना नहीं रहूंगा यहां..भाई ने जेब में हाथ डाला....गुल्लक टटोली....तीन हजार हुए.. चलो अभी चलें.... बाइक थी उसके पास....गुमटी नम्बर-5 पर वीडियो कॉन की शॉप....
ढाई हजार का सिस्टम और आठ सौ के तीन गायकों के कैसेट ....कुछ अपनी तरफ से मिला कर पूरे कम्पनी बाग को संगीतमय बना देने का पक्का इरादा .....घर लौट कर कुछ सुना और काम पर चले गये.. रात दो बजे लौटते समय सुबह पांच बजे तक का इन्तजाम करके घर आए.. कैसेट लगा दिया.. ज्यादातर मकान बंगलेनुमा थे और हम छत पर...इसलिये फुल वॉल्यूम पर..
दो दिन बाद लखनऊ जाकर अपना खजाना भी उठा लाया.. उनमें कई कैसेट तो ऐसे थे जो एक रात्रि जागरण के दौरान चाचा नम्बर दो के घर में जूतों के डिब्बों में पड़े मिले.. ऐसे बेकदरों के घर में चोरी करना कोई गलत नहीं लगा और सब भर लाया..
इस तरह चार महीने बाद फिर गुलजार हुआ कानपुर...वली मोहम्मद को सुन संजय भी सिर धुनने लगा..धीरेंद्र का साथ छूट ही चुका था..मेस्टन रोड की गलियां भी छूट गयी थीं.....हाथरस वाले की जलेबियां और कचौरी.....और डबल हाथरस वाले का मालपुआ......भारत रेस्त्रां के मालिक बुजुर्गवार टंडन जी......
बस हम दो और टैरेस पर लहराता संगीत और दरी पर दो गिलासों में ढलती कंटेसा....जो संजय दिल्ली से ढेर सारी उठा लाया था ... और सिगरेट का धुआं..... रात के इस दो से पांच वाले कार्यक्रम ने बड़े गुल खिलाए..अब बाइक पर पूरे कानपुर शहर के चक्कर भी....कहीं डिवाइडर पर मजमा...तो कई रातें गंगा के किनारे.. एक अद्भुत कार्यक्रम और....संजय के नाना-नानी बिठूर के वासी.....कई बार उधर निकल जाते और सुबह साफ-सुथरी गंगा में डुबकी लगाते....शुक्लागंज में आशुतोष बाजपेई के यहां भी जा धमकना....सुबह गरमागरम जलेबी और समोसे..गंगा पार विवेक पचोरी का घर....उसको भी कम परेशान नहीं किया..
संजय इस लाइफ स्टाइल से इतना चमत्कृत कि बोला...तुमने जागना सिखा दिया....रात इतनी खूबसूरत होती है यह तुमसे पता चला....
8/7/18