अगर मैं कहूं कि खाई-पीई अघाई , मौकापरस्त और बिगडैल औरतों की कुंठा और ब्लैकमेलिंग का एक नाम मी टू भी है , तो आप क्या कहेंगे । मेरा स्पष्ट मानना है कि मी टू मतलब औरत , दौलत और शोहरत का एक्स्टेंशन । अंतिम सच यही है । आप शानदार नौकरी में हैं , फिल्म में हैं और आप के साथ कोई अभद्रता करता है तो आप बरसों इंतज़ार करेंगी यह बात कहने के लिए ? सीधी सी बात है कि तब आप अपनी देह का अपनी तरक्की में इस्तेमाल कर रही थीं , अब बरसों बाद आप को वह दर्द याद आया है । अरे आप को तभी चप्पल खींच कर , झाड़ू खींच कर या जो भी हाथ में मिलता , उस व्यक्ति को पूरी ताकत से मारना था , तभी पुलिस के पास जाना था , कोर्ट जाना था , समाज में चीख-चीख कर यह सब बताना था । कोई छोटी बच्ची नहीं थीं , पूरी तरह समर्थ थीं आप , जब यह कुछ अप्रिय आप के साथ गुज़रा । उसी क्षण वह नौकरी , वह काम छोड़ देना था । आख़िर तरुण तेजपाल ने शराब के नशे में धुत्त हो कर जिस लड़की के साथ बदसलूकी की थी , उस लड़की ने तुरंत प्रतिरोध किया था , पुलिस में गई और तरुण तेजपाल को जेल हुई ।लेकिन आप तो सब कुछ हासिल करते हुए , सब कुछ निभाती रही थीं तब ।
बहुत सी मशहूर औरतें तो अपने पति तक के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट करती हुई दिखी हैं । ज़ीनत अमान और विद्या सिनहा जैसी हीरोइनें पुलिस में अपने पतियों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवा चुकी हैं । लेकिन वहीँ रेखा , परवीन बाबी जैसी औरतें कभी नहीं गईं अमिताभ बच्चन के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने । परवीन बाबी ने एकाध बार शराब के नशे में दबी जुबान कुछ कहा भी अमिताभ के लिए । लेकिन महेश भट्ट के खिलाफ नहीं । मधुबाला दिलीप कुमार या अशोक कुमार के खिलाफ नहीं बोलीं । नरगिस ने राज कपूर के खिलाफ कुछ नहीं कहा , वहीदा रहमान ने देवानंद के खिलाफ नहीं कहा । सुरैया ने देवानंद के खिलाफ कुछ नहीं कहा । जब कि वहीँ मीना कुमारी अपने पति कमाल अमरोही के खिलाफ खुल कर बोलीं । ऐसी बहुत सी कही-अनकही कथाएं हैं फिल्मों में । तो अब आलोकनाथ या नाना पाटेकर के खिलाफ इतने सालों बाद बिगुल बजाने का क्या मतलब ?
इसी तरह क्या एक एम जे अकबर ही हैं पत्रकारों में लंपट और औरतबाज । अब तो लगभग हर संपादक औरतबाज है । और देख रहा हूं कि औरतें खुशी-खुशी उन के साथ हमबिस्तरी करती हुई तमाम लोगों का हक़ मार रही हैं । दर्जनों नाम हैं । दैनिक भास्कर के समूह संपादक रहे , कल्पेश याज्ञनिक और सलोनी अरोड़ा की ब्लैकमेलिंग की कहानी बस अभी-अभी की है । कल्पेश ने कूद कर जान दे दी और सलोनी अरोड़ा जेल में हैं । ऐसी तमाम दबी ढंकी , जानी-पहचानी कहानियां हैं ।
लखनऊ में तो एक ऐसे संपादक थे जो हर व्यूरो में एक रखैल रखते थे । जब कि एक संपादक खुले आम अपनी सहकर्मी स्त्रियों के साथ नोच-खसोट करते रहते थे और औरतें हंसती रहती थीं । हमबिस्तरी भी करते थे और सार्वजनिक रूप से लात भी मार देते थे , गालियां देते हुए दुत्कार देते थे । औरतें फिर भी उन से लिपटी रहतीं । एक पत्रकार तो लखनऊ के कुकरैल जंगल में एक रिपोर्टर लड़की के साथ शराब पी कर कार की बोनट पर निर्वस्त्र मिले एक दारोगा को । जब दारोगा ने टोका तो वह पत्रकार बोला , तुम्हारी नौकरी खा जाऊंगा ! दारोगा ने वायरलेस पर एस एस पी को यह संदेश दिया और बताया कि मेरी नौकरी खा जाने की धमकी भी दे रहे हैं । तो एस एस पी ने दारोगा से कहा , वह ठीक कह रहे हैं । तुम वहां से चले जाओ ।
और तो और अयोध्या में एक तरफ बाबरी ढांचा गिराया जा रहा था और दूसरी तरफ लखनऊ से गए दो संपादक एक रिपोर्टर को अपने साथ सुलाने की प्रतिद्वन्द्विता में उलझे हुए थे । गज़ब यह कि वह रिपोर्टर दोनों ही को उपकृत कर रही थी । छोड़िए लखनऊ में एक ऐसा भी संपादक भी हुआ है जो काना और अपढ़ होने के साथ ही अपनी औरतबाजी और दलाली के लिए भी खूब जाना गया । तरह-तरह की दर्जन भर से अधिक औरतें उस की सूची में उपस्थित हैं । सहकर्मी महिला पत्रकार , सहकर्मी पत्रकारों की बीवियों से लगायत गायिका तक । इस काने संपादक का परिवार टूट गया इस औरतबाजी के फेर में लेकिन इस की औरतबाजी नहीं गई । पैसा भी खूब कमाया इस ने अरबपति भी है । औरतों के साथ ही बारात घर से लगायत इंजीनियरिंग कालेज , मैनेजमेंट कालेज और फार्म हाऊस की बहार भी है इस के पास । लखनऊ के एक संपादक जो अब दिल्ली के एक अख़बार से बतौर संपादक रिटायर हो गए हैं , लौंडेबाजी के लिए भी जाने जाते थे ।
दिल्ली के तमाम संपादकों के अनगिन किस्से हैं । प्रणव रॉय के अनगिन किस्से हैं , बरखा दत्त से लगायत किन-किन का नाम लूं । सुधीर चौधरी तो नोएडा के अट्टा बाजार में एक रात एक सहयोगी एंकर को कार की डिग्गी में संभोगरत स्थिति में पुलिस द्वारा पकड़े गए थे । बाद में इस महिला एंकर का सुधीर चौधरी से अनबन हो गया तो उस ने इन का एक आपत्तिजंक आडियो जारी कर दिया । तो सुधीर चौधरी ने उस एंकर का अपने साथ संभोगरत वीडियो जारी कर दिया ।
किन-किन का बखान करूं , किन-किन को छोड़ दूं । लेकिन कोई औरत इन सब के बारे में नहीं लिख रही - मी टू । तो क्यों ? यह सवाल भी समझना बहुत कठिन नहीं है । अगर यह सारे पत्रकार भी आज एमं जे अकबर की तरह मंत्री बन जाएं तो देखिए क्या-क्या गुल खिलते हैं । बात वही कि तब स्वीटू थे , अब मीटू हैं ।
दयानंद पांडे...
10/13/18