शनिवार, 28 मार्च 2020

मेरठ की कैंची और metoo

यह किस्सा मंटो : दस्तावेज़ 5 में पढ़ने को मिला..सोचा आपको भी पढवाऊं..

मंटो के शब्दों में.... देविका रानी से तनाव के चलते एस मुखर्जी ने बॉम्बे टाकीज़ छोड़कर अपनी फिल्म कंपनी फिल्मिस्तान बनाई..और इसमें वो अशोक कुमार, साउंड रिकार्डिस्ट वाचा और कैमरामैन पाई को भी ले आए..

चल चल रे नौजवान की नाकामी से सबके दिल बुझे हुए थे..इसमें अशोक कुमार के साथ नसीम बानो थीं...अशोक कुमार, वाचा और पाई किसी नई फिल्म के साथ साथ एक नई हीरोइन की चर्चा में व्यस्त थे.. तभी वो नजर आई और उसे देखते ही सबके दिल धड़ धड़ करने लगे..

वो थी पारो..मेरठ की तवायफ़.. उसकी जिल्द की चमक और बेतकल्लुफ़ लहजे के आकर्षण से अशोक कुमार भी न बच सके..किसी फिल्म की शूटिंग में दोनों में दोस्ती भी हो गई..

होली वाले दिन अशोक ने कहा.. यार मंटो..आज पारो ने दावत दी है..जाऊं क्या..
अशोक बोले..तुम भी चलो..
दोनों पारो के घर पहुंचे..तो वहां वाचा और पाई पहले से मौजूद..

पारो दुल्हन की तरह सजी बैठी थी..शराब का दौर हुआ..पारो से ठुमरी सुनी गई..फिर खाना खाया गया..अशोक के हाथ पारो ने धुलवाए..हाथ धोने में पता नहीं क्या हुआ कि अशोक फौरन चलने को बोले..दो दिन बाद अशोक ने कंपकंपाते लहजे में बताया..मंटो यार मुझे तौलिया पकड़ाते हुए पारो बोली..कल शाम अकेले आइये..

मंटो ने पूछा..तुम गए थे क्या..
अशोक बोले..हां गया था..लेकिन तुरंत भाग लिया...
मंटो-क्या हुआ था....
अशोक कुमार-मैं बड़ा डरपोक हूँ..उसने सोफे पर बैठाया और खुद कालीन पर बैठ गयी..मेरे घुटनो के साथ लग कर..दो पैग मुझे पिलाये..दो खुद पिये.. मोहब्बत जताने लगी..मुझे घबराहट शुरू हो गई..उसने मेरा हाथ पकड़ा तो मैंने झटक दिया..

फिर उसकी आँखों में आंसू आ गए मंटो..और बोली मैं तो आपका इम्तिहान ले रही थी अशोक भैया...



10/12/18