जन्माष्टमी के बहाने..
अभी अभी विष्णु नागर को पढ़ा तो कुछ लिखने की इच्छा ज़ोर मारने लगी..तो हो सकता है इस लेखन में कुछ हिस्सा उनका लिखा भी मारूँ..आगे चलें..
इस बार पत्नी ने 15-20 जगह फोन खटखटाने के बाद अपने दिमाग को दृढ़ बनाया कि भगवान श्रीकॄष्ण को दो और तीन सितंबर के बीच जन्माया जाए..तो सबसे ज़्यादा खुशी मुझे हुई..अन्यथा मखाने की खीर, चरणामृत और मेवों की पंजीरी 24 घंटे बाद नसीब होती..
ये कुछ त्योहार और हड़तालका तीज जैसे कुछ चोंचले ही थोड़ा बहुत आभास करा पाते हैं कि मैं हिन्दू हूँ ..बाकी समय तो अपने को चुटकी काटने में निकलता है यह परखने में कि मैं क्या हूँ..
लेकिन यह बहुत स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि मेरी पत्नी का यह जन्म तो अकारथ भया मुझ जैसे नामाकूल इंसान से शादी करके, जिसे लंबे समय तक अपनी जाति का ही ज्ञान नहीं था, वो तो भला हो नगर निगम के उस जूनियर इंजीनियर का, जिसने सगोत्री होने का एहसास कराकर नगर निगम की ठेकेदारी में अपना रजिस्ट्रेशन करा दिया..लेकिन एक हफ्ते बाद ही उसने हमें बनिया समाज को कलंकित करने वाला घोषित किया, जब बड़ी मुश्किलों से बना ठेकेदारी वाला कागज़ हमने उस नाली में बहा दिया, जो हैदर केनाल में गिरती है...
पत्नी ने तभी भाग्य को कोसना शुरू कर दिया था जब चंडीगढ़ में पांच साल रहते हए उसे वैष्णो देवी के दर्शनों से वंचित रखा और आगे भी इरादा कुछ यही है..अब बताइये अगर मुस्लिम होता तो क्या कभी पत्नी को हज पे ले जाता या ईसाई होता तो किसी भी संडे को उसे चर्च ले जाता..तो फिर हिंदुओं के किसी भी देवी देवता की अपने ऊपर कृपा क्यों होनी चाहिए...
लेकिन पत्नी ने इतना तो ठान लिया है कि वो अपने ब्राह्मणत्व के चलते हमें बकासुर नहीं बनने देगी ना ही हमें मां काली के हाथों मरने देगी..
फिर भी बचा खुचा जीवन मेरे साथ कैसे काटेगी यह उसकी प्रॉब्लम है..अभी कल ही मेरे मित्र से फोन पर परलोक जा चुके सगे सम्बन्धियों के पिंडदान के लिए पतिदेव के साथ गया जाने की बात कर रही थी..कानों में पड़ते ही अपन ने चिंघाड़ मारी कि देवी मुझे तो बख्शो.. तो उसने मान लिया कि कोई नरक तो पक्का है अपने लिए..
तो हम भी सदियों से गुनगुनाए जा रहे हैं ...
...ये जीना है अंगूर का दाना...
9/4/18