भूमिहारी और रसमाधुरी
बिहार में पहली बार..दो दिन पहले पटना में पहली सुबह..दो दिन बाद मुज़फ्फरपुर में पहला दिन, भारत रेस्तरां में पहला अपरान्ह और मोतिहारी रोड पर बने हिंदुस्तान के ऑफिस में धरने जा रहा कदम भी पहला..2 अक्टूबर 2002..
इतने सारे पहली बारों में फंसे थे गाज़ियाबाद के वसुंधरा में बैठाए गए कई सारे डर..दिल्ली से पटना को निकलने की पूर्व संध्या को आरा वाले अगस्त अरुणाचल ने दारू पार्टी रखी थी..जिसमें धनबाद का उसका एक मित्र भी शामिल..सबसे पहले तो उस इन्कम टैक्स कमिश्नर टाइप दोस्त ने भयभीत करना शरू किया मुज़फ्फरपुर की भूमिहारी को लेकर ..अगस्त ने भी समर्थन में ठेका लगाया.. खास बात यह कि मुझे भूमिहारी से डराने वाले दोनों सज्जन खालिस भूमिहार..और उससे भी बड़ी बात यह कि मुज़फ्फरपुर पहुंचते ही जिनके यहां ठहरना था वो भी भूमिहार..तो क़िस्मत से पेंच लड़ाने वाले इस नाचीज़ इंसान को अब पांच साल मुज़फ्फरपुर की भूमिहारी में गुजारने थे..अब आगे का हाल..
हाँ जी तो मिठनपुरा में एमडीडीएम गर्ल्स कॉलेज के सामने से रिक्शा लिया बंका बाजार के लिए.. वहां किसी भी समय ढह पड़ने वाली इमारत में सिटी ऑफिस..स्थानीय संपादक सुकान्त नागार्जुन अपनी रिपोर्टिंग टीम के साथ अपन का हाल, चाल और ढाल देखने को कुर्सी पर डटे हुए..सबसे मिल मिला कर दोपहर के भोजन को उसी गर्ल्स कॉलेज की एक प्राध्यापिका की डाइनिंग टेबल पर..
चार बजे फिर बंका बाजार..मुज़फ्फरपुर के श्रेष्ठ भूमिहारों में एक बाबू शशि नारायण सिंह ने शहर से कोसों दूर हिंदुस्तान के मुख्यालय तक पहुंचाने के लिए राकेश प्रियदर्शी को तैनात किया हुआ था..बाइक कुछ ही दूर चली थी कि भारत रेस्तरां के सामने भूख का एहसास हुआ..
दोसे का आर्डर दिया और राकेश ने रस माधुरी लाने को बोला.. पांच मिनट बाद बेयरा के हाथों रस माधुरी सामने से आते ऐसी दिखी जैसे द्रोपदी वरमाला लिए आ रही हो..बाकी तो फिर उसके स्वाद से लेकर अगले पांच साल का मुज़फ्फरपुर प्रवास सब स्वप्न सरीखा..
9/6/18