शनिवार, 28 मार्च 2020




गौतम गोस्वामी! सरदार पटेल का कहा भूल गए..


जिस तरह नौकरशाही का राजनीतिकरण बहुत ही बेशर्मी और पूरी नंगई से दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में हुआ है, उतना तो किसी जाहिल देश में भी नहीं हुआ होगा..

मोदी सरकार ने जिस तरह गुजरात कैडर के आठ विभिन्न एजेंसियों के अफसरों को पूरे देश की बागडोर सौंप रखी है और जिस बेशर्मी से निगरानी एजेंसियों का इस्तेमाल पिछले चार साल से किया जा रहा है, कुल मिला के वो इतिहास में काला धब्बा ही साबित होना है..

आइये..कुछ साल पहले की एक सच्ची गाथा सुनाऊं..

बहुत दिन नहीं हुए जब गौतम गोस्वामी ध्रुव तारे सा चमक रहे थे, पर उस चमक के पीछे जेनरेटर कौन सा काम कर रहा था, इसकी जानकारी यहां-वहां से मिलने लगी थी.. 

तब एमबीबीएस की डिग्री वाले गौतम अनपढ़ वाल्मीकि डाकू की तरह मुंह से मरा-मरा की तर्ज पर लूला-लूला नहीं निकाल रहे थे, लालू-लालू का ही जाप कर रहे थे, तो भी वह वाल्मीकि की तरह ऋषि बन रामायण नहीं लिख सके, इश्तहारी-ईनामी अपराधी बन कर रह गए, जिसे खोजने के लिए देश भर में छापे डाले जा रहे हैं.. 

थोड़ा पीछे लौटें- अंग्रेजों से विरासत में मिली नौकरशाही का भविष्य सरदार पटेल बहुत पहले भांप गए थे कि अगर इसका भारतीयकरण न हुआ तो यह मशीनरी जनता के लिए गुलाब का फूल नहीं, वरन सत्ताधारियों के लिए मनमानी करने का औजार बन जाएगी..तभी तो उन्होंने आजादी के शुरुआती दिनों में ही चेता दिया था कि जो नौकरशाह मंत्रियों के मुसाहिब बनना चाहते हैं वे इस पेशे में कदम न धरें.. 

अड़सठ साल बाद सरदार पटेल के शब्द और सीख तो आज भी पन्नों में टंके हैं, पर टाइम मैगजीन का वह आदर्श पुरुष आज भगोड़ा बन गया है.. शायद वह गौतम गोस्वामी ही थे या उन जैसा कोई नया-नकोरा आईएएस अफसर, जिसने शुरू शुरू में किसी भी मंत्री या राजनेता के फोन पर कोई गलत काम करने से स्पष्ट मना कर दिया था, तो लालू प्रसाद यादव के मुंह से निकला था-इस बदमाश को सबक सिखाना है..
 
तभी एक समझदार नेता बोले-अभी बच्चा है, सब सीख जाएगा..वही बच्चा इतना कुछ सीख गया कि कई घोटाले उसके नाम चस्पां हो उसे करोड़पति बना गए.. तो, गुलाम भारत में गांधी जी के सौजन्य से सिविल नाफरमानी रग-रग में समोये नेतागण तो आजाद भारत में सत्ता की कुर्सियों पर चढ़ बैठे और अपनी इन्कलाब-जिंदाबाद वाली सोच को विरासत में मिली नौकरशाह के हाथों में सौंप दिया, जो आज भी जनता से उतनी ही दूर है, जितना सत्तर साल पहले कोई आईसीएस हुआ करता था.. 

गुलामी की यादें धूमिल पड़ते ही दोनों अब सात फेरे वाले गठबंधन में बंध गए हैं.. जब तक जवानी की लहर में निष्ठा की चासनी घुली रहती है तो हर दिन होली हर रात दीवाली..तभी तो मुलायम सिंह को अपने राज्य के सबसे बड़े अफसर की कुर्सी पर या तो अखंड प्रताप सिंह भाते हैं या नीरा यादव-जो अपनी ही एसोसिएशन के सबसे ज्यादा भ्रष्ट अफसर माने गए.. और बिहार के सीवान और गोपालगंज के डीएम इसलिए बेदखल किए जाते हैं क्योंकि वे जायकेदार नहीं..दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र के ऐसे अनेक उदाहरण हैं.. आल्हा तो जगह-जगह गूंज रहा है..

अंत में...14 साल पहले के बिहार के सर्वेसर्वा अफसर गौतम गोस्वामी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था, इल्जाम था 2004 की उत्तर बिहार की बाढ़ के लिए भेजे गए राहत के सामान में हेराफेरी..गौतम जेल में ही मर खप भी गए..तो आज का हर ऐसा अफसर अपने "मालिक" की गुलामी कर अपना यही अंजाम तय कर रहा है अन्यथा इतिहास तो उसे डस्टबिन में फेंकेगा ही...



10/26/18