सोमवार, 30 मार्च 2020

राजा जयकिशन दास का अपन से किस्मत कनेक्शन

ग़दर के समय एक कलेक्टर साहब हुआ करते थे जयकिशन दास.. चतुर्वेदी ब्राहमण..हुआ होगा कुछ, अंग्रेजों ने उन्हें मुरादाबाद के आसपास की सारी जमींदारी सौंप दी..साथ में राजा की उपाधि भी..अब वो हो गए राजा जयकिशन दास....अभी बस इतना ही...ज़्यादा जानकारी चाहिए तो गूगल पर इस नाम को टाइप करें.. उत्सुकता का जायका बढ़ाने को कह दूं कि यही राजा जयकिशन दास अपन के पड़पड़ ददिया ससुर हैं..राजा जय किशन दास सर सैयद अहमद खान के बेहद करीबी थे और अलीगढ़ यूनिवरसिटी के बनने में उनका भी योगदान था..

इनकी पड़पड़ पोती को ब्याहते ही कुछ चतर्वेदी हमसे खार खाने लगे..बल्कि मेरठ हिंदुस्तान के महाप्रबंधक योगेंद्र चतुर्वेदी ने तो डबल हरामीपना किया जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई...और उनसे भी बड़े दिल्ली में बैठे चतुर्वेदी शशिशेखर के चलते हमारा संपादकत्व तेल लेने चला गया..कोई न..

राजा जयकिशन दास के पुत्र परमानंद पाठक मेरे शुद्ध पड़ससुर  हुए..इन परमानंद जी ने ही 1900 में आनंद भवन और स्वराज भवन 20-20 हज़ार मेँ मोतीलाल नेहरू को बेचे थे..कुंवर परमानंद के भाई कुंवर ज्वालाप्रसाद के बेटे हुए सर कुंवर जगदीश प्रसाद जो वॉयसराय कौंसिल के मेंबर थे..

परमानंद पाठक के बेटे कुवंर विनयानंद पाठक ब्रिटिश राज के पहले इंस्पेक्टर जेनरल ऑफ पुलिस हुए..उनके पुत्र विजयानंद पाठक और इंदिरा गांधी करीब करीब साथ ही पैदा हुए...नेहरू और पाठक खानदान में काफी दोस्ताना था....विजयानंद पाठक की एरोगेंट तबियत इंदिरा जी को रास नहीं आई वरना  मेरी सास भी हो सकती थीं वो..

तो जब अपन विजयानंद पाठक के दामाद के रूप में पेश हुए तो उन्होंने अपनी बहन सरोजिनी मिश्र से हमारा इंटरव्यू सफदरजंग  मकबरे के ठीक सामने की एक कोठी में कराया..जिनके पति रेलवे बोर्ड के चेयरमैन रह चुके थे..उस समय अपन उत्तरप्रदेश सूचना विभाग में बेहद ठसक वाले उपसंपादक हुआ करें थे..

हमारे साथ उस अहम मौके पर प्रसिद्ध वामपंथी पत्रकार सुभाष धुलिया थे, लखनऊ में जिनके महानगर वाले कमरे में प्रेमी जोड़े को पनाह मिलती थी..

जारी..



8/18/18