सोमवार, 30 मार्च 2020

ऐसा भी होता है क्या

ग्यारहवीं की वार्षिक परीक्षा में शिवनारायण सिंह ने अपन को हर सब्जेक्ट में नकल कराई..तब भी दूर दूर तक पास होने की कोई आशंका नहीं थी..परीक्षा खत्म होते ही पिता और बहन के साथ दक्षिण भारत घूमने का प्रोग्राम...

वेल्लोर नेल्लोर, नेल्लोर वेल्लोर करते हुए केरल के कन्नूर पहुंचे..बारिश, जंगली समुद्र और हरियाली का समंदर..तीन दिन में ही जी उकता गया...अब ..अब बस से मैसूर...कुर्ग का बेहद खूबसूरत रास्ता..जंगली समुद्र और पहाड़ी जंगल का देर तक साथ..फिर बस्ती और पहाड़..

बड़ी तमीज़दार व्यवस्था कि जितनी सीटें उतने यात्री..कैसी भी लदाई नहीं..एक भी सवारी खड़ी नहीं थी..

काजीपेट में बस रुकी..केले के पत्ते में लिपटा दाल वड़ा खा कर सीट पर बैठे ही थे कि कंडक्टर आया..कर्नाटक और केरल दोनों जगह हिंदी बोलने वालों की कमताई नहीं..

सर, क्या आप एडजस्ट कर लेंगे इसे..उस युवती को कॉलेज में एडमिशन के लिए मैसूर जाना था लेकिन टिकट तभी मिलता जब बैठने की जगह होती.. वो बहन के साथ बैठ गयी..एकाध घंटे वाद मैसूर पहुंच गए..बेहद खूबसूरत शहर..

रास्ते में जो भी बातचीत हुई हो, बहरहाल मैसूर में बस से उतरते ही वो युवती हमें होटल ले गई.. इतना ही नहीं, अब हम तीनों-बाप-बेटी-बेटा का चार दिन का मैसूर प्रवास उस युवती के हवाले था..

सबसे पहले उसने BA में एडमिशन लिया.. फिर ..चार दिन चार रातें हमारे साथ.. उसने मैसूर की रग रग से परिचय करा दिया...उन दिनों अपन को शरमाने की बहुत बुरी आदत थी..तो उससे भी शरमाये..बहन से पता चलते ही कि अच्छा गाता हूँ..उसने किन्हीं मधुर क्षणों में गवा भी लिया... सुनते ही पगला गई..फिर तो अपनी जिस फ्रेंड के घर जाती, बहन-भाई को साथ ले जाती और वहां कुछ देर बाद ही फरमायश.. और अपन शुरू हो जाते..

चार दिन बाद मैसूर से बैंगलोर.. इस बार उसने पिता के सामने और भी लुभावना प्रस्ताव रखा..कि  मैं साथ चल रही हूँ..आप सब मेरे अंकल के यहां ठहरेंगे..मेरे अंकल सांसद हैं..

रात को बैंगलोर बस अड्डे पर पहुंचते ही कार पहुंच गई और हम किसी सरकारी बंगले में थे..सांसद महोदय ने दक्षिण भारतीय अंदाज़ में स्वागत किया...और अगले दिन सुबह ही सांसद अंकल हमें घुमाने निकल पड़े..उस समय कर्नाटक के मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल हुआ करते थे..एक दिन उनके यहां भी जाना हुआ..मुख्यमंत्री तो बाहर थे, लेकिन उनकी पत्नी और बेटियों ने बढ़िया अगवानी की.. खास बात यह कि हमारी कुर्ग कन्या शांति ने पाटिल के परिवार के सामने भी मुझसे गवा दिया..मुकेश का आवारा हूँ और हेमंत का तुम पुकार लो..

बहरहाल चार दिन मैसूर की और चार दिन बैंगलौर यानी कुल आठ दिन की साथी शांति से बिछुड़ने का वक्त आ गया..हम मद्रास होते हुए  पूना चले गए और वहां से बम्बई..लखनऊ पहुंचे तो पता चला कि ग्यारहवीं में फेल होना अपने नसीब में नहीं था..

शांति से बहन की कुछ महीने ख़तबाजी चली..वो अपने हर ख़त में मुझे पूछती..अगले साल गर्मी की छुट्टियों में फिर दक्षिण भारत के उन्हीं शहरों में..लेकिन कन्नूर और मैसूर नहीं थे इस बार के दौरे में..शांति से संपर्क नहीं हो पा रहा था तो बैंगलौर पहुंच कर  उन्हीं सांसद को फोन कर पूछा तो वो शांति के बारे में बस इतना ही बोले कि काजीपेट उनका संसदीय क्षेत्र है उसी नाते जानते थे उसे...बस उससे ज़्यादा कुछ नहीं...



8/29/18