नाव चली नानी की नाव चली
रुकिये तनिक .. जोरबाग वाले जिस बंगले में अपन की मुहँ दिखाई हुई वो सरोजिनी मिश्र का नहीं उनके देवर सुमंत मिश्र का था, और देखने को बुलाया था उनकी पत्नी शारदा मिश्रा ने..
मामला यह था कि मुख्यधारा वाले लोग सामने आने को तैयार न थे, इसलिए पाठक जी ने आगे किया बहन की देवरानी को..शारदा मिश्रा.. अति की भव्य महिला..पति सुमंत मिश्रा 50 के दशक में टेनिस के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी..रामनाथन कृष्णन उन्हें हरा कर राष्ट्रीय चैंपियन बने..और रामनाथन कृष्णन को मात दी थी बेटे गौरव मिश्रा ने और गौरव मिश्रा को हराया था रमेश कृष्णन ने..
खैर, साथ गए पत्रकार मित्र सुभाष धूलिया को मीठा नमकीन परोस अपन को ख्वाबगाह में बुलाया गया..
--बेटा क्या करते हो
सरकारी नौकरी
--रेलवे में करना चाहोगे क्या
न जी जहां हूँ ठीक हूँ
--शादी कब करना चाहोगे
फौरन से पेश्तर
--शादी दिल्ली में होगी..बाराती कम हों तो ठीक रहेगा..
लेकिन बेटा एक बात बता दूं ..हमारे देवेंद्र भाई साहब बहुत खुराफ़ाती रहे हैं..इमरजेंसी में इंदिरा जी ने जेल भिजवा दिया था, लेकिन जब बेटे की मौत हुई तो स्पेशल ट्रेन भेजी थी..कभी अर्श कभी फर्श वाले इंसान हैं..तुमको देख चुके हैं लखनऊ में चूँ चूं के घर में..उन्होंने तुम्हारा गाना भी सुना था..
(छह महीने पुराना हादसा कैसे भूल सकता था..चूँ चूँ उर्फ मिथलेश चतुर्वेदी से ज़बरदस्त याराना..रोज एक चक्कर तो लग ही जाता और उसकी भाभियों से गपशप मार, उसकी मां की चौबों वाली शुद्ध गालियां सुन कर और एक कप चाय पी कर उसके साथ बाहर निकल सिगरेट पीता.. एक शाम उसके घर में
चूं चूं के मौसी मौसा और उनकी दो औलादें..उनमें एक पाठक साहब और एक उनकी लख्त ए जिगर.. तभी कुछ गाना वगैरह हुआ था..)
तो इस तरह अपनी शादी पक्की कर उसी रात लौट लिए..जब घर वालों को बताया तो कोहराम मच गया ..लेकिन सब कुछ सुर में था इसलिए दिल और दिमाग ने जुम्बिश भी नहीं ली..
और इस तरह घनघोर जाड़ों वाली दिल्ली की एक शाम बिना सेहरे, बिना घोड़ी, बिना बाजा, बिना फूफा, बिना मौसा, बिना बाप के .. बस माँ की मदद से हम राजा जयकिशन दास चौबे की वंशज को ब्याह कर लखनऊ एक्सप्रेस से लौट आये..इस हादसे के गवाह एक बार फिर वही सुभाष धूलिया बने...जो पिछले चार महीने से कदम कदम पर दुनिया की खूंखार निग़ाहों से हमें बचा कर आज इस मंजर तक ले आये थे..
जारी...
8/20/18