शनिवार, 28 मार्च 2020





या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिथा

तस्लीमा....

किसी बांग्ला मनीषी की लिखी रामायण के हवाले से बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने औरत के हक में लिखा है कि रावण को मार कर राम सीता से कहते हैं-मैंने युद्ध करके जो जय लाभ प्राप्त किया है, वह तुम्हारे लिये नहीं, अपने प्रसिद्ध वंश के कलंक को मिटाने के लिये। जाओ वैदेही, तुम मुक्त हो। जो करना था, वह मैंने किया। मुझे पति रूप में पा कर तुम जराग्रस्त न होओ। मेरे जैसा धर्मबुद्धि सम्पन्न व्यक्ति दूसरे के हाथ में गयी नारी को एक क्षण के लिये भी कैसे ग्रहण कर सकता है। तुम सच्चरित्र हो या दुश्चरित्र, तुम्हें आज मैं भोग नहीं सकता मैथिली। तुम उस घी की तरह हो, जिसे कुत्ते ने चाट लिया है।

तस्लीमा कहती हैं-मुझे तो यही लगता है कि स्वंय राम ने सीता के प्रति सबसे ज्यादा अन्याय किया है। इतना पाखंड तो रावण ने भी नहीं किया। राम ने कभी यह नहीं जानना चाहा कि रावण ने सीता से ज़ोरजबरदस्ती की भी थी या नहीं, सिर्फ शक की बुनियाद पर राम ने सीता पर दोषारोपण कर दिया। 

तस्लीमा यहां सवाल करती है कि केवल नारी के सतीतत्व को लेकर इतना शोरगुल है, सती शब्द का कोई पुल्लिंग विलोम क्यों नहीं है।
अपने सतीतत्व या पवित्रता का प्रमाण देने के लिये सीता को अग्नि परिक्षा देनी पड़ी थी। इतना ही नहीं, प्रजा का संदेह दूर करने के लिये राम ने सीता को फिर वनवास की ओर धकेल दिया। तीसरी बार की परीक्षा देने से सीता ने मरना बेहतर समझा और वह धरती में समा गयीं। अन्यथा जीवन भर जिल्लत झेलतीं। सीता को मुक्ति दी धरती ने। किसी पुरुष ने उन्हें आश्रय नहीं दिया। सम्मान नहीं दिया। इसलिये सीता ने किसी पुरुष या पुरुषशासित समाज से आश्रय नहीं मांगा। 

रामायण में नारी को मनुष्य की संज्ञा तो नहीं ही दी गयी बल्कि यह सीख और दे दी गयी कि समाज पुरुष के एकनिष्ठ होने का दावा नहीं करता और नारी को एकनिष्ठता, सतीत्व या पवित्रता का प्रमाण देने पर भी समाज में सम्मान नहीं मिलता। 

सीता का सतीत्व देख शतकों से, क्या पुरुष क्या नारी-दोनों मुग्ध हैं। सीता के अग्नि में प्रवेश से दोनों ही तृप्त हैं। सीता के सत्कर्म गाथा बन गये। लेकिन कुल मिला कर नारी का चरम अपमान, निर्लज्ज दलन असंख्य बार रामायण में उच्चारित हुआ है।

धर्मराज युधिष्ठिर के बारे में खट्टर काका कहते हैं कि उस इनसान को धर्मपुत्र नहीं अधर्मपुत्र कहो, जो अपने छोटे भाई अर्जुन की ब्याहता को गर्भवती करने में नहीं हिचका। गनीमत समझो कि पांचों पांडवों में पांचाली के पांच अंगों का बंटवारा नहीं किया गया, नहीं तो क्या गत बनती। फिर भी कम दुर्दशा नहीं हुई द्रोपदी की। जैसे वह नारी नहीं साझे का हुक्का हो, कि जिसने चाहा गुड़गुड़ा दिया। तभी तो कर्ण ने भरी सभा में कहा था कि पांचाली धर्मपत्नी नहीं, पांचों की रखैली है। 

और द्रोपदी का अपमान दुशासन ने तो बाद में किया, आहुति तो युधिष्ठिर ने ही डाली थी, जिन्होंने पत्नी की देह का विज्ञापन करते हुए उसे दांव पर चढ़ा दिया-मेरी पत्नी न नाटी है, न बहुत लम्बी है, न दुबली-पतली है, न बहुत मोटी है, उसके काले-काले घुंघराले बाल हैं। मैं उसी को पासे पर चढ़ा रहा हूं।

दांव हार जाने के बाद दुशासन ने द्रोपदी का चीरहरण शुरू किया। लेकिन पांडव चुपचाप सभा में सिर झुकाए बठे रहे। तभी तो द्रोपदी के मुंह से निकल पड़ा कि मेरे ये पति पति नहीं हैं। बाद में किसी बात पर उर्वशी ने अर्जुन को ताना मारा था कि तुम पुरुष नहीं, नपुंसक हो। स्त्रियों के बीच जा कर नाचो।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिथा
महाभारत...

महाभारत युद्ध के कई कारण गिनाये जा सकते हैं, पर उसके मूल में है औरत को भोगने की उद्दाम लालसा।

महाराजा शांतनु का मछुआरिन सत्यवती पर रीझना, सत्यवती का उनसे वचन लेना कि उससे जन्मी संतान ही हस्तिनापुर पर शासन करेगी, इस पर शांतनु पुत्र देवव्रत का आजीवन अविवाहित रहने की भीष्म प्रतिज्ञा करना, शांतनु के मरने के बाद सत्यवती के दोनों पुत्रों चित्रान्गद की युद्ध में और विचित्रवीर्य की घनघोर अय्याशी के चलते निस्संतान मौत। 

हालांकि वंश चलाने को उनके लिये भीष्म अंबिका-अंबालिका को जबरन उठा कर लाए थे और दोनों भाइयों से उस समय के समाज में निकृष्टतम कहा जाने वाला विवाह कराया था। काशी राजा की इन दोनों बेटियों के अलावा तीसरी और सबसे बड़ी बेटी अंबा ने भीष्म का रथ हस्तिनापुर पहुंचने से पहले ही आत्महत्या कर ली, क्योंकि वह उन्हीं पर रीझ गयी थी, जो भीष्म को अपनी प्रतिज्ञा के चलते स्वीकार नहीं था। 

विवाह के बाद ही तपेदिक से दोनों भाई मर गए तो वंश बढ़ाने के लिये व्यास से उन पर बलात्कार करवाया गया। नतीजनतन एक के अंधा बेटा हुआ दूसरी का बेटा जन्मजात रोगी। रोगी पांडु की दोनों पत्नियों कुंती और माद्री के साथ भी यही हुआ। पांचों में से कोई पांडव पांडु का पुत्र नहीं था। 

पांडु ने ऐसा करने के लिये बाकायदा कुंती को यह कहते हुए आज्ञा दी कि पति के कहने पर जो सुपुत्र प्राप्ति के लिये पर-पुरुष से सिंचन नहीं करवाती, वह पाप की भागिनी होती है। खुद महर्षि व्यास सत्यवती और पराशर मुनि के अवैध संबंधों की उपज थे। इस तरह कुरुवंश के शांतनु कुल में कुलवधुओं को दूषित करने की परम्परा सी चल पड़ी थी।

तस्लीमा नसरीन--महाभारत के प्रथमांश और अन्तिमांश के बीच कम से कम आठ वर्षों का अंतराल है। इस लम्बे समय के अंतिम हिस्से के रचयिता भृगुवंशी ऋषिगण हैं, जो ब्राह्मण संयोजन के नाम से जाना जाता है। नारी के अवनमन का चित्र इस अंश में नग्न रूप में सामने आता है।महाभारत के इस भाग में साफ लिखा है कि नारी अशुभ है, सारे अमंगल का कारण है। कन्या दुखद है। भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा-नारी से बढ़ कर अशुभ कुछ भी नहीं। नारी के प्रति पुरुष के मन में कोई स्नेह या ममता रहना उचित नहीं। पिछले जन्म के पाप के कारण इस जन्म में नारी जन्म होता है। स्त्री सांप की तरह है, इसलिये पुरुष को कभी उसका विश्वास नहीं करना चाहिये। त्रिभुवन में ऐसी कोई नारी नहीं, जो स्वतंत्रता पाने योग्य हो। जो छह वस्तुएं एक क्षण की भी असावधानी से नष्ट हो जाती हैं, वे हें-गर्भ, सैन्य, कृषि, स्त्री , विद्या, एवं शूद्र के साथ संबंध। 

भीष्म आगे कहते हैं कि आदिकाल में पुरुष इतना धर्मपरायण था कि उसे देख कर देवताओं को ईष्र्या हुई, तब उन्होंने नारी की सृष्टि की-पुरुष को लुभा कर उसे उसे धर्मच्युत करने के लिये।

खट्टर काका-महर्षि याज्ञवल्क्य को ही लीजिये। वह कैसे आत्मज्ञानी थे, कि दो-दो पत्नियां रखते थे। आत्मा के लिए मैत्रेयी और शरीर के लिए कात्यायनी। इन्हीं याज्ञवल्क्य ने शास्त्रार्थ में गार्गी के प्रश्नों से घबरा कर धमकी दे डाली थी कि अब ज्यादा पूछोगी तो तुम्हारी गर्दन कट कर गिर पड़ेगी।

राजा दुष्यंत ने कुमारी मुनिकन्या शकुंतला को दूषित कर दिया और फिर पहचानने से भी इनकार कर दिया। राजा ययाति को बूढ़ापे में भी भोग की लालसा बनी रही। कोई चारा न देख जवान बेटे से ही यौवन उधार मांग कर अपनी लालसा मिटायी। ऐसी उद्दाम कामवासना का गरिमामय दृष्टांत और किसी देश के इतिहास में मिलेगा!

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिथा
त्रेता हो या द्वापर..

महाभारतकाल में क्या तो राजा, क्या ऋषि-मुनि और क्या देवतागण-इन सबके लिये औरत की औकात जिंस से ज्यादा कुछ नहीं थी।दरअसल, रामायण-महाभारत की सारी घटनाओं पर नजर डालने के बाद एक ही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है, वह है- न स्त्री स्वतन्त्रंअहर्ति यानी स्वतंत्रता पर स्त्री का कोई अधिकार नहीं।

अब खट्टर काका की नजर पड़ती है आयुर्वेद पर। वह एक प्रकांड वैद्य से पूछते हैं कि पारा क्या है-जवाब में संस्कृत का एक श्लोक, जिसका अर्थ है-शिवजी की धातु पृथ्वी पर गिर गयी, वही पारा है। तो गंधक क्या है महाराज!
एक समय श्वेतद्वीप में क्रीड़ा करते-करते देवी जी स्खलित हो गयीं। तब क्षीर समुद्र में स्नान किया। उसमें कपड़े से धुल कर जो रज गिरा, वही गंधक है। 

खट्टर काका की नजर में आयुर्वेद में श्रृंगार रस की भरमार है-मसलन वैद्य लोलिम्बराज गर्मी का उपचार बताते हैं-सुगंधित पुष्पमाला और चंदन से शीतल शरीरवाली पीन पयोधरा और पुष्टनितम्बिनी युवतियों के आलिंगन दाह को दूर कर देते हैं।ज्वर का इलाज-चंदन-कपूर का लेप किये हुए रमणी मणिमेखलायुक्त जघन चक्र चलाती हुई सम्पूर्ण शरीर में वनलता की तरह लिपट जाए तो प्रबल ताप को भी शांत कर देती है।

सर्दी की दवा-मांसल जंघा और स्थूल नितंबवाली युवती अपने पीन स्तनों से गाढ़ालिंगन करे तो सर्दी दूर हो जाती है। यानी जाड़े की दवा भी युवती और गर्मी की दवा भी युवती। युवती का शरीर चाय की प्याली या शरबत का गिलास से ज्यादा कुछ नहीं!

एक वेदाचार्य ने ऐसी खीर बनायी कि वृद्ध भी खाय तो दश प्रमदाओं का मान-मर्दन कर सके। दूसरे आचार्य ने ऐसा चूर्ण बनाते हैं कि नपुंसक भी वह चूर्ण मधु के साथ चाट जाय तो कंदर्प बन कर सौ कामिनियों का दर्प चूर कर दे। 

एक आचार्य ने गारंटी दी कि यदि प्रथम पुष्प के समय नवयौवना नस्ययोगपूर्वक चावल का मांड़ भी ले तो उसका यौवन कभी ढलेगा नहीं। दूसरे आचार्य ने और भी जबरदस्त दावा किया कि श्रीपर्णी के स्वरस में सिद्ध तिल का तेल मर्दन करने से विगलित यौवनाओं के ढले हुए यौवन भी ऊपर उठ जाते हैं।

एक आचार्य का अनुसंधान है कि ब्राह्मणों की दातौन 12 अंगुल की, क्षत्रियों की नौ अंगुल की और स्त्रियों की चार अंगुल की होनी चाहिये। एक साहब ने तो स्त्रियों के स्नान पर ही रोक लगा दी-शतभिषा नक्षत्रों में अगर स्त्रियाँ स्नान कर लें तो सात जन्म विधवा हों। 

दूसरे फरमा गये-यदि स्त्री नवमी में स्नान करे तो पुत्र नाश हो, तृतीया में पति नाश हो, त्रयोदशी में अपना नाश हो।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिथा
बाल विवाह..

इस देश में बाल विवाह की परम्परा इसलिये पड़ी क्योंकि जहां कन्या 12 वर्ष की हो रजस्वला हुई तो पितरों को हर महीने रज पीना पड़ेगा। 

शास्त्रकारों को इस बात की बड़ी फिक्र थी कि कहीं कुमारी को रोमांकुर हो गया तो गजब हो जाएगा। सोमदेवता बिना भोग लगाए मानेंगे नहीं। कुच देख कर अग्नि देवता और पुष्प देख कर गंधर्व देवता पहुंच जाएंगे। इसलिये कन्या का विवाह कर छुट्टी पाओ। क्योंकि देवताओं को मनमानी करने से कोई रोकने वाला नहीं।

स्त्रियों को धमका कर रखने का एक बड़ा साधन इस देश में रहा है स्वर्ग और नरक की बेहद असरकारक अवधारणा और दोनों जगहों के लिये पुरुष की अनुशंसा जरूरी। एक जगह कहा भी गया है कि भारतवर्ष में, जी हां केवल भारतवर्ष में जो स्त्री पति की सेवा करेगी उस स्वामी के साथ स्वर्गलोक का पासपोर्ट मिल जाएगा। और अगर स्त्री कहीं पति को धोखा दे कर और किसी की सेवा में चली जाए तो उसे कुम्भीपाक नरक में अनंतकाल तक रातदिन नुकीले दांत वाले भंयकर सांप सरीखे जंतु डंसते रहेंगे। 

मजेदार बात यह है कि पर-स्त्रीगामी पति के लिये किसी भी शास्त्र में कहीं कोई विधान नहीं है। कुछ और बानगियां-----ऋतुस्नान के बाद जो स्त्री पति की सेवा में उपस्थित नहीं होती वह मरने पर नरक-गामिनी होती है, बारंबार विधवा होती है।-जो स्त्री पति से पहले ही भोजन कर ले वह नरक में जा कर घोर कष्ट भोगती है।-स्त्री ने अगर पति को भूल चुपचाप किसी खाद्य पदार्थ का सेवन कर लिया तो या तो वह शूकरी हो कर जन्म लेगी या गधी हो कर या विष्ठा की कीड़ी हो कर।- जो पति से जुबानदराजी करे वह गांव में कुत्ती या जंगल में गीदड़नी हो कर जन्म लेगी। 

ऋग्वेद में तो नारी शरीर की इस तरह मीमांसा की गयी है कि इस वेद के अंग्रेजी अनुवादक राल्फ टीएच ग्रिफिथ ने तो कुछ मन्त्रों का अनुवाद इसलिये नहीं किया कि वे बेहद वीभत्स थे। वह कहते भी हैं कि मैं इन-इन मन्त्रों को छोड़ कर आगे बढ़ रहा हूं क्योंकि मैं शालीन अंग्रेजी में इनका अनुवाद नहीं कर सकता।

इसी उपमहाद्वीप में बांग्लादेश की तस्लीमा नसरीन को रात के अंधेरे में देश छोड़ कर इसलिये भागना पड़ा था क्योंकि वह औरत के लिये मर्दों से बराबरी का अधिकार मांग रही थीं। उन्होंने औरत की अस्मिता को लेकर कुरान पर कुछ सवाल खड़े किये तो मुल्ला-मौलवियों ने उनकी मौत का फतवा जारी कर दिया।

तस्लीमा की लिखी एक कविता के छपने पर ढाका विश्वविद्यालय के लड़कों ने कुछ वैसा ही तांडव किया था, जैसा शिवसेना या उस जैसी मानसिकता वाले संगठनों ने दीपा मेहता की वाटर फिल्म की शूटिंग के वक्त वाराणसी में किया था क्योंकि बदबू मार रहे गंगाजल को वाटर नाम देना उन्हें कतई मंजूर नहीं था। 

एक दिन तस्लीमा को मां-बहनों का सर्वनाश कर देने वाली उस कविता पर अपनी सफाई देने के लिये उन लड़कों की अदालत में पेश भी होना पड़ा था।

कविता थी---
हम लड़कियां खेल सकें जो खेल
इसलिये उतरती थी शाम
उस खेल का नाम है गोल्लाछूट
एक बार फिर मेरा मन होता है मैं भी खेलूं
अभी भी कभी-कभी आकुल-व्याकुल होती हैं पांवों की उंगलियां
धूल में धंस जाना चाहती हैं गुप्त एड़ियां
मेरा मन होता है दुनिया की तमाम लड़कियां लगा दें गोल्लाछूट दौड़ 

विभिन्न नामों वाली पूजनीय देवियों से भरे-पूरे भारत में दक्षिण फिल्मों की अभिनेत्री खुश्बू को इसलिये प्रताड़ना झेलनी पड़ी क्योंकि उसने विवाह से पहले सुरक्षित यौन संबंधों की बात कही। मकसद था एड्स से बचाव।देश के कोने-कोने में कन्याओं के भ्रूण कचरे में फैंके जा रहे हैं। 

अल्ट्रा साउंड के जरिये लड़की होने की पुष्टि होने पर गर्भपात करा देने की असंख्य घटनाओं से औरतों की आबादी निरंतर घटती जा रही है। किसी देवी के नाम पर पाखंड करने वालों की कोई कमी नहीं, पर धरती पर हंसती-खेलती किसी भी उम्र की लड़की तालिबानी निगाहों का कांटा बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में कन्या को गर्भ में ही खत्म कर देने का दौर जुनून की हद पार कर गया है। मोटा-मोटी अब वही कन्याएं सुरक्षित हैं, जो या तो बिल्कुल नाली का कीड़ा हों या जिनमें पेज थ्री की शोभा बनने का हौंसला हो। लेकिन उन्हें भी शहर-शहर में धधक रहे तंदूरों से बचने के साधन तलाशने की जरूरत है।

 
 10/10/18