खिचड़ी पर ताक-धिना-धिन
चूं-चूं करती आयी चिड़िया
दाल का दाना लायी चिड़िया
मोर भी आया
चूहा भी आया
कौवा भी आया
खों-खों करता बंदर भी आया
चिड़िया के लाए इन दो-चार दानों पर कितनी शानदार कविता... लेकिन भारतीय समाज के कूड़ा दिमाग के चलते स्कूली बच्चों को दोपहर को खाना खिलाने की योजना इस कदर नामुराद होती जा रही है कि जिसमें झगड़ा पंगत में बैठने को लेकर तो है ही, भोजन बना कौन रहा है इसको लेकर भी आएदिन बवाल मचा रहता है..
अव्वल तो यह योजना ही ऐसे मरभुक्खे अंदाज में चलायी जा रही है कि चल रही है तो ठीक है बंद हो गयी तो और बढ़िया..
बड़ी हाय-तौबा के बाद वोट बैंक पक्का करने के चक्कर में देश के सरकारी स्कूलों में शुरू हुई इस योजना के चावल-दाल के दाने या तो कमीशनबाजी में फंस गए, या खिचड़ी बनाने वाले की जात में अटक गए.. स्कूल की तरफ खींचने और स्कूल में जमीन पर बैठा कर बच्चों का कुपोषण दूर करने के अभियान में तो घुन लग ही गया है लेकिन सर्वशिक्षा अभियान का ढोल बज रहा है..
यह ढोल किसी खंडहर हो चुके उस कमरे में बज रहा है, जहां डेढ़ सौ बच्चे हैं और दो अध्यापक हैं, जिसमें से एक खिचड़ी के दाल-चावल के दानों और खाने वालों का हिसाब लगा रहा है तो दूसरा खिचड़ी का गणित सुधारने को कहीं भटक रहा है, तो खिचड़ी बनाने वाला भकुआ बना सोच रहा है कि उसके हाथ की बनी खिचड़ी कितने बच्चे खाएंगे..
इस पोषण अभियान की शर्त यही है कि खिचड़ी बनाने वाला दलित होगा..
बच्चों को पढ़ाई की तरफ आकर्षित करना, पढ़ते-पढ़ाते उनका तन-मन स्वस्थ बनाना और उनके बाल मन से जात-पांत का ज़हर बाहर निकाल फेंकना- योजना के पीछे यह सोच है ...लेकिन जब मामला सवर्ण-दलित से भी आगे निकल दलित-दलित का हो जाए तो यही प्यारी सी योजना वीभत्स लगने लगती है..
सवर्ण तो हजारों साल से दलित को दुरदुराते आ रहे हैं.. उनके बच्चे पाप-पुण्य को समझने का पहला पाठ ही किसी दलित की छाया को छूने या उससे बच कर निकलने से सीखते हैं.. इसलिए अगर बच्चों के लिए दोपहर की खिचड़ी योजना की ऐसी की तैसी करने में अन्य परम्परागत तत्वों के अलावा छुआछूत भी विद्यमान है तो आश्चर्य नहीं..
अगर सवर्ण मां-बाप अपने सवर्ण बच्चों को दलित के हाथ की बनी खिचड़ी को लेकर हंगामा मचा रहे हैं, या अपने बच्चों को स्कूल से हटा लेने की धमकी दे रहे हैं तो इसमें कुछ नयापन नहीं, लेकिन जब एक स्कूल में दलित विद्यार्थी इसलिये खिचड़ी का बहिष्कार करें क्योंकि वह डोम के हाथों बनी है तो भूल जाइये कि इस देश से अगले हजार साल में भी छुआछूत की भावना खत्म हो जाएगी..
9/15/18