अंधेर नगरी में भगत सिंह और गांधी
इस देश के सबल लोकतंत्र को राजनीति और जनताऊ वोट बैंक ने इतने सारे प्रहसनों में बदल दिया है कि सालों तक रोज नौटंकी खेली जा सकती है.....और खिल भी रही है इत्तेफाक से.......
शुरुआत एक काल्पनिक प्रहसन से......आजाद भारत
के बिड़ला मंदिर में अनूप जलोटा ..... वैष्णव जन को तेरे कहिये जे.. सुना रहे हैं बाप को। जलोटा जी ने जब पीर शब्द के पी अक्षर को पीपीपीपीपीपीपीईईईईई करते हुए ताना.... तभी अंग्रेजों के ज़माने के किसी आरोप में गिरफ्तार कर लिये गये बापू। भगत सिंह को जंतरमंतर पर इन्क्लाब-जिन्दाबाद के नारे लगाते पुलिस की जीप में ठूंस दिया गया। अमरमणि त्रिपाठी को किसी लड़की का दैहिक शोषण और फिर उसकी हत्या कर लाश को ठिकाने लगाते पकड़ा गया। तीनों गिफ्तारियां एक ही समय पर। बापू और भगत सिंह को तुरंत तिहाड़ पहुंचा दिया गया....लेकिन त्रिपाठी जी को तीन घंटे लगे......रास्ते भर समर्थकों और मीडिया का जमावड़ा....तिहाड़ तक पचास गाड़ियों में सवार समर्थक यही नारा लगा रहे थे....अमरमणि तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं ।
बापू और भगत सिंह और मजिस्ट्रेट को उतनी देर इंतजार करना पड़ा। फूलों से लदे त्रिपाठी के पहुँचते ही तीनों को एक ही सेल में बंद कर दिया गया। त्रिपाठी जी का गला भारत माता की जय बोलते बोलते बैठ गया है....अब चैनल की एक बाला को याद कर कुछ बुदबुदा रहे हैं। बापू..... हे राम....वाली मुद्रा में पड़े हैं, जो 30 जनवरी 1948 को छाती पर गोडसे की गोली लगने के बाद निकले थे। भगत सिंह के मुंह से निकल रहा है गॉड सेव द किंग.... क्योंकि तूने मुझे फांसी पर चढ़ा मेरी लाश के टुकड़े टुकड़े कर दिये
9/28/18