शनिवार, 28 मार्च 2020

मई दिवस पर चंडीगढ़ जनसत्ता में metoo..

चंडीगढ़ जनसत्ता शुरू होने के कुछ महीने बाद ही प्रदीप पंडित को दिल्ली बुला लिया गया..इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और दिल्ली की पत्रकार बिरादरी इस निहायत बेहूदा शख़्स से भलीभांति परिचित होगी..इन महाशय पर फिर कभी..

पंडित के स्थान पर प्रभाष जोशी के एक और करीबी सुभूमि का पदार्पण हुआ..जोशी मंडली का दूसरा दर हरामी..उसी के आसपास पधारीं कोई गुप्ता जी...अब सुनिये आगे का किस्सा..

गुप्ता जी पता नहीं किस मिट्टी की बनीं थीं कि शुरू में तो उनकी किसी से भी नहीं पटी... तब जनसत्ता में काम का इतना दबाव होता कि तनाव भगाने को मैं कोई न कोई गाना गुनगुनाता ही रहता..गुप्ता जी आधा घंटा लेट आतीं और मेरे गुनगुनाते थोबड़े के सामने मेज पर पर्स पटक सीधे संपादक जी के कमरे में..

दो ही दिन में उनके पर्स ने अपन को इस कदर पका दिया कि तीसरे दिन एजेंसी की कई खबरों की पुंगी बना कर जितेंद्र बजाज के केबिन में चाय पी रही गुप्ता जी के आगे रख दी कि तुम यहीं सारी खबरें बना कर मुझे भिजवा दिया करो..संपादक को हक्का बक्का छोड़ कर मैं तो निकल लिया..पीछे पीछे पाँव पटकती गुप्ता जी..
--राजीव यह क्या बदतमीजी है..
--मुझे अखबार निकालना है..यहां बनाओ या संपादक के कमरे में..मुझे खबरें चाहिए..
--मैं ऐसे काम नहीं कर सकती..
--तो शादी कर के गृहस्थी संभालो..

बहरहाल इस वाक़या से हम दोनों ने एक दूसरे को समझ लिया..और अच्छे से काम करने लगे..

उन्हीं दिनों दिल्ली जनसत्ता में प्रभाष जोशी के कई चहेते रिपोर्टर किसी नाइट क्लब कांड में फंस गए और उन सभी का ट्रांसफर कर दिया गया..आलोक तोमर बम्बई, तो महादेव चौहान शिमला और राकेश कोहरवाल चंडीगढ़..

दिल्ली जनसत्ता में तब तक चिरकुटी शुरू हो चुकी थी..सब महान पत्रकार अपनी अपनी दुकानें खोल कर धंधा कर रहे थे..तो राकेश कोहरवाल को चंडीगढ़ की मजदूरी रास नहीं आ रही थी..जैसे तैसे काम निपटा कर स्पोर्ट्स के अजित दलाल के साथ बोतल की जुगाड़ में लग जाते..

उस रात 12 बजे के आसपास पहले तो सुभूमि और गुप्ताइन में ख़बर बनाने को गरमागरमी हुई, उसके बाद एक फोन आया और गुप्ता जी मुझे माथा पीटता छोड़ कर नीचे चली गईं..

कुछ दिन बाद मई दिवस पर प्रभाष जी ने जनसत्ताईयों को होटल में दावत दी..सब लोग वहां पहुंचे तो माहौल में तनाव दिख रहा..पूछताछ की तो पता चला कि उस रात सुभूमि से झगड़े के बाद जो फोन आया था, वो शराब पिये कोहरवाल का था गुप्ता जी के लिए कि ...जानी..नीचे आओ न..

गुप्ताइन ने सुभूमि और कोहरवाल की शिकायत जोशी जी तक भिजवा दी थी..प्रभाष जी अपना रौद्र रूप दिखाते कि सुभूमि ने फूट फूट कर रोना शुरू कर दिया और बाथरूम में घुस कर तो बाकायदा बुक्का फाड़ दिया..उसके रोने और सिसकियों की तान सुनते हुए सभी लोग हुक्का बने बैठे हुए थे..अपन को अखबार निकालना था तो भन्ना 
कर खाना शुरू कर दिया..प्रभाष जी खामोश बैठे मुझे खाता देख रहे..

बाद में प्रभाष जी ने जो कहना सुनना था कह सुन लिया..लेकिन उन्हें मेरा खाना और सबको काम पर चलने के लिए कहना पसंद नहीं आया..वो तो इतने गस्से में थे कि उस दिन अखबार ही न निकले वाले मूड में..कुल मिला कर मामला "metoo" बनने से बाल बाल बचा..

10/16/18