रांची में रोइये जार जार क्या कीजिये हाय हाय क्यों.....
रांची से अपन को Yc अग्रवाल ने चालीस दिन बाद ही पटना बुलवा कर वापस मुज़फ़्फ़रपुर भिजवा दिया अन्यथा रांची हिंदुस्तान का जो हाल था, शर्तिया अपन को ग़ालिब ए ख़स्ताहाल बना कर छोड़ता...
पहली बार किसी संपादक को रात के दो बजे आफिस में खटिया तोड़ते और अपने चंपुओं से सिर में मालिश कराते देखा...आमतौर पर एक चलते हुए अखबार का संपादक दस बजे PRO गिरी करने के लिए ऑफिस छोड़ देता है, लेकिन यह संपादक सारी pro गिरी news के सिलेक्शन में करता ...कि लोकल पन्नों पर किस मंत्री से वसूली वाली खबर लगानी है और किसकी चमचागिरी करनी है.. किस अफ़सर को उठाना है किसको गिराना है ...कौन सी ख़बर घर भरेगी और कौन सी जलवा बनाएगी...यही सब करने के लिए रविवार पत्रिका में महाबली संपादक एसपी सिंह के टाइपिस्ट रहे ठाकुर साब अपनी रातें ऑफिस में काली करते थे...
रात काली करने का जबरदस्त फायदा मिला हरिनारायण सिंह को...झारखंड की पूरी राजनीति उनके इशारों पर चलती थी..किन विधायकों को सत्ता के पक्ष में करना है, किनको बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए, ये सब तय करते थे ठाकुर...
हद तो तब हुई जब बाबूलाल मरांडी के खिलाफ बग़ावत हुई और अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया गया, तो विधायकों की खरीद फ़रोख़्त की सारी जिम्मेदारी अपने ठाकुर पर ही थी...रुपयों भरी अटैचियां इन्हीं के यहां धरी गई थीं...
इस इनसान के संपादक और इस क़दर ताकतवर बनने में जाति के और कई सारे अनमोल गुणों के होने का बहुत बड़ा खेल था...इस बारे में विस्तार से फिर कभी...
लब्बोलुआब ये कि हम दोनों के सितारों में मेल होना ही नहीं था, तो अपन को फौरन पटना पहुंचने को कहा गया...
जारी...
10/22/18