आरोग्य निकेतन को याद करते हुए...
कई साल पहले का जिक्र कर रहा हूँ..कुछ क्या बहुत कुछ याद आ गया..अभी एक गली में उसे देखा.. आंखों पे मोटे कांच का चश्मा..ऊपर से नीचे तक खंडहर..और अपनी गली के ठाकुर साहब ..रोज रम के तीन पैग..और मुर्ग या मटन की बोटियाँ..जो खुद से तैयार करते..
शुरू का असामाजिक प्राणी हूँ तो यहां भी आसपास कैसी भी दुआ सलाम से दूर..पान खाने के वक़्तों में पान की दुकान पे टकरा जाते..
तो बता यह रहा हूँ कि आज वो जो एक गली में मिली, अपनी जवानी में हमारी गली की नाली साफ करती थी और दो घरों का कूड़ा उठाती थी..उन दिनों ठाकुर साहब भी काले बाल और काली मूंछ और आजमगढ़ की बोली के साथ पूरी बहार पर..
लब्बोलुआब यह कि दिल लगाने में दोनों तरफ से कोई देरी नहीं हुई.. गांव में खेती करा रही ठकुराइन ने आ कर कुछ बखेड़ा जरूर किया..तो एक दिन जोड़ा गुटरगूँ के बजाए एक दूसरे पे खोखिया रहा..यानी प्रेमकथा का पटाक्षेप हो गया..
तो आज ठाकुर साहब भी ताराशंकर बंदोपाध्याय के आरोग्य निकेतन की माफ़िक महाशय जी की तरह अपने हाथ की नाड़ियों पे दूसरे हाथ की उंगलियों धरे कोई आहट ज़रूर सुनते होंगे..
आरोग्य निकेतन कई दिन हो गए पढ़े, लेकिन उसकी कथा आज भी बसी हुई है दिमाग में..कि कैसे गांव के उद्दंड युवक को कविराज यानी वैद्य पिता शहर भेजता है डॉक्टरी पढ़ने को..जहां बेटा के रुकने का इंतज़ाम वैद्य जी अपने मित्र के यहाँ करते हैं..वो उद्दंड युवक पिता के दोस्त की निहायत चुलबुली कन्या को दिल दे बैठता है..लेकिन कन्या के मन में तो कोई और बसा है..वो उद्दंड युवक एक दिन अपने रक़ीब को ठोंक पीट कर गांव भाग आता है..
पिता की विरासत संभालते हुए वो नामी वैद्य बनता है..नाड़ी की हरकत समझना उसकी खासियत है..नाड़ी पकड़ कर ही उसे मृत्यु की आहट सुनाई पड़ने लगती है..अपने कई करीबियों का वो इलाज इसलिए नहीं करता क्योंकि उसे नाड़ियों में मौत की आहट सुनाई पड़ती है..इस नाड़ी ज्ञान से ही वो अपने जवान बेटे को खोता है, पत्नी को और कई मित्रों को विदा करता है..
अंत में उसे मिलती है अपनी प्रेमिका, जो अब अंधी और कृषकाय हो चुकी है..उसकी नाड़ी से वो समझ जाता है कि इसका अंत निकट है..और उसकी मौत के हफ्ते भर बाद वो अपनी नाड़ी देखता है..अब उसे वही धमक सुनाई दे रही है...
9/27/18