कोई हिसाब-किताब लगा कर तो नहीं चला था लेकिन हिसाब बारह घंटों का ही है
लम्बी दूरी तय की थी
तुम तक पहुंचने को
समय की नाप-जोख हो तो बरसों की दूरी
ठीक बारह घंटे बाद की रात
जहां तुम मुझे छोड़ गयीं
सब कुछ था
चोंधियाने वाली रोशनी
लोगबाग
बेहिसाब शोर
बेसलीका आवाजाही
इन सबके बीच..
मैं वीराने में गुम
काठ सा मार गया था
दिमाग में चल रहा
उन बारह घंटों का हिसाब-किताब
पहले चार घंटों का
दूसरे चार घंटों का
और फिर हथेली से फिसल गये
अंतिम चार घंटों का
सबको अलग-अलग करता रहा
कुरेद-कुरेद कर
घंटों को मिनटों में
मिनटों को पलों में
सोचा...
कुछ तो पता चलेगा
क्या खोया क्या पाया
हिसाब यही निकला लेकिन
मैं जी चुका था उन बारह घंटों को
9/21/18