सोमवार, 30 मार्च 2020

सुपर्णखा की नाक और भारतीय अदालतें


चित्रकूट के आसपास लक्ष्मण ने सुपर्णखा के नाक कान काट लिए तो घटना की लोकेशन को देखते हुए मामला कचहरी, सेशन कोर्ट होते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ही तो जाता न...अब रावण की स्थिति को समझिए..बेचारा हर तारीखों में लंका से पुष्पक विमान पर सवार हो कर इलाहाबाद आता..इसके लिए उसे रात में दो बजे उठना पड़ता, दिशा मैदान, नहान वगैरह के बाद दो घंटे शिव चालीसा के पाठ में लगाता.. कोंडकांय शंख फूंकते फांकते, प्रसाद ग्रहण कर नाश्ते और तैयार होने में एक घंटा..फिर पुष्पक के हैंगर तक पहुंचने में आधा घंटा..यानी छह तो बज ही जाते..

पुष्पक विमान की स्पीड 500 किलो मीटर प्रति घंटा रख लीजिए..और लंका से इलाहाबाद की दूरी तीन हज़ार किलोमीटर.. तो हाईकोर्ट के गेट तक पहुंचने और गेट पास बनवा कर अंदर अपने वकील षडमुखम सहाय तक पहुंचने में साढ़े ग्यारह का टाइम तो रख ही लीजिए..

रुकिये अभी..लंकाधिपति रावण के टसुए बहाने का समय शुरू..क्योंकि पिछली 35 तारीखों में या तो जज की दादी मर गयी, या जज के ससुर के चचेरे भाई को सांड़ ने पटक दिया..या जज को जुखाम हो गया..या फ्रेश मामले निपटाने में ही शाम हो गई..यह तो रहा जज से संबंधित मामला..

पता चला कि किसी तारीख पर सब ठीक चल रहा है कि कोर्ट में किसी वकील ने छिछोरापन दिखा दिया ...(जो भारतीय अदालतों का सुविख्यात गुण है) और पिट गया तो उसके  छिछोरेपन के पक्ष में और उसकी पिटाई के विरोध में वकीलों ने हड़ताल कर दी तो बेचारी सुपर्णखा की इज़्ज़त तो गई न बट्टेखाते में..सोने की लंका के अधिपति राक्षसराज रावण क्या उखाड़ लेंते..सो रावण ने ऐसी कोई मूर्खता नहीं दिखाई और सीता को ही उठा लिया..

इसी तरह अभी तक मैं सोचता था कि अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता था, पर कृष्ण ने उसे लड़वा दिया, यह अच्छा नहीं किया..

लेकिन अर्जुन युद्ध नहीं करता, तो क्या करता? कचहरी जाता! जमीन का मुकदमा दायर करता! वन से लुटे पिटे लौटे पांडव अगर जैसे तैसे कोर्ट-फीस चुका भी देते, तो वकीलों की फीस कहां से देते, गवाहों को पैसे कहां से देते? और कचहरी में धर्मराज का क्या हाल होता? वे क्रॉस एक्जामिनेशन के पहले ही झटके में उखड़ जाते.. सत्यवादी भी कहीं मुकदमा लड़ सकते हैं! 

कचहरी की चपेट में भीम की चर्बी उतर जाती। युद्ध में तो अट्ठारह दिन में फैसला हो गया; कचहरी में अट्ठारह साल भी लग जाते, और जीतता दुर्योधन ही, क्योंकि उसके पास पैसा था। 

सत्य सूक्ष्म है, पैसा स्थूल है। न्याय देवता को पैसा दिख जाता है; सत्य नहीं दिखता। शायद पांडव मुकदमा लड़ते लड़ते मर जाते क्योंकि दुर्योधन पेशी बढ़वाता जाता। पांडवों के बाद उनके बेटे लड़ते, फिर उनके बेटे। बड़ा अच्छा किया कृष्ण ने जो अर्जुन को लड़वाकर अट्ठारह दिनों में फैसला करा लिया। वरना आज कौरव-पांडव के वंशज किसी दीवानी कचहरी में बैठे बीड़ी फूंख रहे होते और किसी काले कोट वाले की चिरौरी कर रहे होते..



9/19/18