सोमवार, 30 मार्च 2020




बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम ने साबित किया था कि 1947 में धर्म के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण गलत था। इसीलिए भारत ने 1971 में एक करोड़ से ऊपर पूर्वी पाकिस्तान  के नागरिकों को शरण दी थी..

पूरे देश ने इसके लिए शरणार्थी रिलीफ टैक्स दिया था..उनके लिए अनाज इकट्ठा करते वक्त बोनगां की गलियों में हमने नारे लगाए थे, ओपार थेके आशचे कारा ? आमादेरी भाई-बोनेरा' तथा ' भाईएर जन्न अन्न चाई'..

शरणार्थी शिविरों में कोलकाता के मेडिकल छात्र छात्राएं टीका लगाते थे ताकि महामारी न फैल जाए..इन मेडिको छात्रों में मेरी बहन संघमित्रा भी थी, जो तब नीलरतन सरकार मेडिकल कॉलेज में पढ़ती थी.. सर्वोदय वाले, रामकृष्ण मिशन और मदर टेरेसा के लोग शरणार्थियों में धर्म के आधार पर भेद नहीं करते थे लेकिन RSS वाले करते थे..

पश्चिमी पाकिस्तान की फौज का क्रूर दमन बांग्लादेशियों पर था, हिन्दू और मुसलमान दोनों पर.. रोशनआरा बेगम नामक युवती शरीर पर बम लपेट कर पाकिस्तानी टैंक के सामने कूद गई थी..सर्वोदय नेता रामचंद्र राही और इंदिरा राही को उसी दौर में पुत्री-रत्न की प्राप्ति हुई तब मेरी बा उसको रोशनआरा नाम से बुलाती थी..कोलकाता के साथी अशोक सेकसरिया के पड़ोस के मकान से 'बांग्लादेश बेतार' रेडियो प्रसारण होता था..जेपी ने बांगलादेश को मान्यता दिलाने के लिए विश्वजनमत तैयार करने के लिए दुनिया भर का जब दौरा किया तब सरकारों के निर्णय से पहले पूरी दुनिया के नागरिकों का मन बांग्लादेश मुक्ति के हक में बन चुका था..

धर्मवीर भारती और ओमप्रकाश दीपक जैसे पत्रकार जोखिम उठाकर सुलगते पूर्व पाकिस्तान में गए और लंबी रपट छापी.. इंदिरा गांधी की तुलना अटलबिहारी ने दुर्गा से की..जगजीवन बाबू जैसे अनुभवी रक्षा मंत्री ,सेनाध्यक्ष मानेकशॉ और पूर्वी कमान के जगजीत सिंह अरोड़ा के नेतृत्व में पाकिस्तान के जनरल नियाजी की रहनुमाई में सबसे बड़ा आत्मसमर्पण हुआ..शेख मुजीब और उनकी पार्टी अवामी दल सेक्युलर थी,है। मसले को सांप्रदायिक आधार पर तूल देने की भाजपाई मंशा विफल होगी..

हम नहीं भूले हैं कि भाजपाई बोडो, गोरखालैंड, कामतापुरी और कश्मीर को चीर कर लद्दाख को केन्द्रशासित राज्य बनाने वाली विच्छिनतावादी ताकतों से हाथ मिलाते हैं, फिर भी खुद को राष्ट्रवादी कहते हैं। उनका राष्ट्र तोड़क राष्ट्रवाद विफल हो।



अफलातून देसाई के फेसबुक वॉल से...

8/1/18