शनिवार, 28 मार्च 2020

यह है इस समाज की असलियत!!!

ब्राम्हण वाकई सौभाग्यवान होता है। जीवित रहते भी सर्वश्रेष्ठता और  मर कर 25 लाख का.. सोलह लाख की एसयूवी से चलने वाला एपल के एरिया मैनेजर की विधवा को नौकरी और 25 लाख मिल गए.. हालाँकि मौत की कीमत एक करोड़ लगाई थी, लेकिन पर इतने भी इस संवेदनहीन सरकार ने 12 घंटे के अंदर दे दिये तो ब्राम्हण होने की बल्ले बल्ले..

यह एक तकलीफ है, जो ब्राह्मण और अब्राह्मण के विभाजन को देखते हुए ज़्यादा टीस दे रही है..पिछले 18 महीने की इस सरकार में हुए 1100 फर्जी इनकाउंटर में करीब 70 मुसलमान-दलित-ओबीसी वर्ग के लोग पुलिस की गोली से मारे जा चुके है..किसी को धेला भी मिला हो तो बताइएगा..

अगर विवेक  तिवारी मुसलमान होता और अमेरिकी कंपनी एपल का अधिकारी न होता तो पुलिस को उनकी एसयूवी में हथियार रखने में कितना समय लगता..और पुलिस को यह सिद्ध करने और समाचार पत्रों के माध्यम से यह प्रोपेगंडा करने में कितने मिनट लगते कि मुठभेड़ में मारा गया शख्स "इंडियन मुजाहिदीन" की स्लीपर सेल का आतंकी था और योगी को मारने आया था..

यह देश ऐसी असंख्य कहानी किस्सों से लदा पड़ा है..शायद सारी दुनिया एक तरफ और भारतवर्ष एक तरफ..

संयोग से पुलिस की गोली से मारा गया इंसान तिवारी निकला, जो सब कुछ हो सकता है लेकिन अपराधी नहीं हो सकता.. तो योगी जी को भी तुरंत घोषणा करनी पड़ी कि यह एनकाउंटर नहीं था, दोषी बख्शे नहीं जाएंगे..मामला मुसलमान या दलित या पिछड़े वर्ग का होता तो योगी जी कहते कि पुलिस को अपना काम करने दीजिए..अपराधमुक्त प्रदेश हमारी प्राथमिकता है..

अखिलेश यादव का देख लीजिए..उनको भी ब्राम्हण के मरने से इतनी राजनीतिक तकलीफ हुई कि पांच करोड़ के मुआवजे की माँग कर बैठे..उन्हें यह नहीं दिखा कि कैसे अलीगढ़ में दो गरीब मुसलमानों को घरों से उठाकर मीडिया के कैमरों के सामने गोली मारी गयी..

बाकी तो हर नेता और यूं और वूं मीडिया भी ठेका लगाए पड़ा है कि हाय बेकसूर को मार डाला..

अशहर गोहाटवी..
10/1/18