मुज़फ्फरपुर के प्रदर्शन में वातापि और इल्वल..
वर्ष दो हज़ार चार..रक्ष जाति के वातापि और इल्वल पुष्पक पर सवार हो दंडकारण्य की ओर.. पेरिस में हुई शादी की चर्चा करते-करते दोनों भाई बीच-बीच में धरती की ओर झांक लेते थे...अबकी शोर सुना तो फिर झांका..देखा नीचे हजारों लोग हाथ में झंडे उठाये जोर-जोर से कुछ बोलते जा रहे थे.. दोनों भाइयों को लगा कि इस किसी दुश्मन ने जैसे हमला बोल दिया हो..
उन्होंने पुष्पक को थोड़ा नीचे झुकाया तो आवाजें साफ सुनायी दीं.. आगे चल रहा आदमी माइक पर चिल्लाया -जो जनता को प्यासा मारे-पीछे हजारों आवाजें निकलीं-वो सरकार निकम्मी है, आगे वाला फिर चिल्लाया- जो गर्मी में तड़पाये-वो सरकार निकम्मी है, जो अंधेरा फैलाये-वो सरकार निकम्मी है..
दोनों भाइयों का ध्यान इस शोरगुल पर इस कदर था कि पुष्पक बिना रोक-टोक के जुलूस के सामने ही सड़क पर आ टिका.. शानदार खटोलेनुमा विमान देख गर्मी से भन्नायी भीड़ उस तरफ लपकी और कुछ ने पता नहीं क्या समझ दोनों को दो-चार हाथ तक रसीद कर दिये..दोनों चिल्लाये-अरे मार क्यों रहे हो, हम रावण खानदान के चिराग... पेरिस से आ रहे हैं..
जुलूस के आयोजकों को दोनों अजूबे बड़े काम के लगे और बोले- चलो हमारे साथ, डीएम को मुख्यमंत्री के नाम मांगपत्र देना है..दोनों भाइयों का हुलिया ड्रेस डिजायनर संदीप खोसला ने पेरिस में ही काफी कुछ बदल दिया था..पर अब भी दोनों सत्तर के दशक के हिप्पी नजर आ रहे थे..
एक आयोजक ने उनके हाथ में भी झंडा थमा दिया और कहा-नारे लगाओ.. झल्लाया हुआ इल्वल भाई के कान में फुसफसाया-वातु, कहो तो इन सबको चबा जाऊं?
राक्षस सहोदरों को आगे कर नारे लगाता हुआ जुलूस डीएम कार्यालय पहुंचा..वहां पुलिस के जवानों ने उन्हें डंडे दिखाने शुरू कर दिये और कहा -पांच लोग ही अंदर जाओ.. पेरिस रिटर्न वातापि और इल्वल का रौब आयोजक खा ही चुके थे, उनमें से एक बोला कि आप दोनों भी हमारे साथ अंदर चलो..
उन्हें देखते ही डीएम ने कहा-देखिये आप लोगों को जो कहना है जल्दी कहें, मुझे कुल्हड़ों का इंतजाम करने जाना है.. वातापि खड़े-खड़े ही तेज आवाज में बोला-शहर की बिजली की व्यवस्था कब सुधरेगी, इनके घरों के नलों में पानी कब आयेगा, ये कब तक इस सड़ी गर्मी में भुनते रहेंगे?
आपका परिचय-डीएम ने सवाल दागा.. हम दंडकारण्य से आये हैं..अभ्यारण्य तो सुना है, यह क्या बला है-डीएम ने पूछा.. अच्छा खैर, देखिये आप लोगों तो पता ही है कि हम लोग इस तरफ खास ध्यान दे रहे हैं..माननीय मुख्यमंत्री जी ने इन समस्याओं को प्राथमिकता देते हुए हल करने को कहा है.. पर हम भी क्या करें, चोर तार ही काट ले जाते हैं.. जेनरेटर के लिये डीजल मंगवाते हैं तो ड्रम उठा ले जाते हैं..
तभी वातापि ने अपनी तरफ से बड़ी समझदारी दिखायी- तो आप चोरों के हाथ क्यों नहीं कटवाते? आप कैसी बात कर रहे हैं हमारे देश में हर काम कानून से होता है..तभी एक जुलुसिया बोला-पर बिजली देने में कोई कानून नहीं है जी, घरों में लोगों को तड़पने को छोड़ दिया गया है और सत्तू फैक्टरी को बिजली दी जा रही है..
डीएम बोले-वो ऐसा है कि हम सत्तू से बिजली बनाने का प्रयास कर रहे हैं..इसके लिये आइसलैंड से बात चल रही है..
इल्वल ने टोका-पर वहां तो सत्तू होता नहीं!
डीएम-यही तो, सत्तू यहां से जायेगा, बिजली वहां बनेगी..कुछ समय बाद हमारे यहां घर-घर बनेगी..
वातापि-और पानी से बिजली!
डीएम-नहीं, वो तो बाढ़ के लिये है.. हर साल आती है कि नहीं, उसे भी तो पूरा पानी चाहिये.. वातापि-हमें सत्तू या पानी से क्या मतलब, यह बताइये कि बिजली कब आयेगी?
डीएम-मैं क्या बताऊं, मैं खुद आफिस में रात काट रहा हूं..आप लोग भी ऐसा ही करें..
इल्वल-और घर के बाकी लोग क्या करें?
डीएम-उन्हें केरल भेज दीजिये, जैसे मैंने भेज रखा है तब तक या तो बिजली ठीक हो जायेगी या आकाश में घटाएं घिर आयेंगी..
वातापि भन्ना कर बोला- यहां से हिल ले इलु, अपना दंडकारण्य ही भला.. उसने आयोजकों से चलने की इजाजत मांगी..
आयोजक--आप चल दिये, ठीक है कुछ दिन बाद हम सड़क के लिये आंदोलन करेंगे, उसमें जरूर आइयेगा...
10/5/18