सोमवार, 30 मार्च 2020

भूखे सोएं

अमेरिका में आज करीब चार करोड़ लोग भूखे पेट
सोते है यूरोप में भी चार करोड़ लोग भूखे सो रहे
हैं..भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 32
करोड़ लोग भूखे सोते हैं..
अगर जीडीपी विकास का मापदंड होती तो अमेरिका में भूखे नहीं होने चाहिये थे..पर अमेरिका और
यूरोप में भूखों की संख्या लगातार बढ़ रही है..
भारत में भी जीडीपी के बढ़ने के साथ साथ भुखमरी तेजी से बढ़ रही है..

किसी देश की सम्पत्ति या समृध्दि जीडीपी
से नहीं, बल्कि जीएनपी से बढ़ती है। जीडीपी
का अर्थ हुआ ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट -- आपके
देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर होने वाला
कुल प्रोडक्शन। फिर भले ही एक्साइड जैसी
कम्पनियां प्रोडक्शन यहां करती हों और
मुनाफा अपने देश में ले जाती हों, और भोपाल
गैस कांड की जिम्मेदारी से बच निकलती हों-
लेकिन जीडीपी की ओर टकटकी लगाने वाले
अर्थवेत्ता इसी को विकास कहते हैं।
.
इससे उल्टा जीएनपी का शास्त्र है। ग्रॉस नेशनल
प्रॉडक्ट मापते समय दूसरे देश में आए इन्वेस्टर ने
कितनी लागत आपके देश में लगाई उसे नहीं जोड़ना,
बल्कि जो मुनाफा वे अपने देश में ले गए थे उसे
घटाते हैं और आप के देश के नागरिकों ने यदि
विदेशों में इन्वेस्ट (निवेश) किया है और मुनाफा
कमाकर देश में भेजा है, तो उसे जोड़ते हैं। इस
प्रकार आपकी आर्थिक क्षमता की असली
पहचान बनती है जीएनपी से न कि जीडीपी से।
फिर भी हमारी रिजर्व बैंक, हमारे सारे
अर्थशास्त्री और हमारी सरकारें हमें जीडीपी
का गाजर क्यों दिखाती हैं!!! क्योंकि 
गाजर या मूली  बिना सींग वाले प्राणी को दिखाई जाती
है।

7/16/18