एक ऐसा व्यक्ति और पत्रकार जिसने जन्म और शिक्षा कहीं और ली, पर अपनी जिंदगी के बेहतरीन साल बिहार में गुजारे। सिर्फ गुजारा ही नही बिहार उनके भीतर ऐसा उतरता चला गया कि लोग उन्हें सबसे बड़ा बिहारी मानने लगे। एक किताब लिखी #कबीरा उसमे बिहार जिंदा हो उठा। किताब में एक पाठ लिखा #बाढ़नामा जो उत्तर बिहार के बाढ़ पर रिपोर्टिंग की नजीर बन गयी। सिर्फ रिपोर्टिंग ही नहीं उसके साथ किस्सागोई ऐसी की पढ़ने की ललक बरकरार रहे। मैं बात इस पोस्ट के लेखक वरिष्ठ पत्रकार Rajeev Mittal की कर रहा हूँ। परसो उन्होंने कहा कि यार मुजफ्फरपुर काँड पर लिखूंगा जरूर और आज पोस्ट सामने है। बेहतरीन सर।।
Santosh Kumar jha
आओ #ब्रजेश ठाकुर तुम्हें कहानी सुनाऊं
वैसे तो ईश्वर की कृपा से देश भर में ब्रजेश ठाकुर संस्कृति ठाठे मार रही है..हर राज्य की सरकार तुम्हारे दम पर अठखेलियाँ कर रही है..नीतीश बाबू तुम्हारे काम से मुतमईन हैं..नीतीश खुश तो नीतीश के दिल्ली वाले अब्बा भी खुश..तुमसे तुम्हारा समाज भी खुश..अपने पिता की समाजसेवा वाली भावना से बेटी निकिता आनंद भी गदगद..
तुमसे बात करने का मन इसलिए हुआ कि कुछ साल मैंने भी मुज़फ्फरपुर में गुजारे..हो सकता है किसी पान की दुकान पर तुमसे दो चार बात भी हुई हो..पेशा हम दोनों का एक ही..पर तुम पत्रकार के अलावा समाजसेवा में भी लगे रहे..जबकि अफसोस..अपन रूखी सूखी पत्रकारिता ही करते रहे और एक दिन मुज़फ्फरपुर से विदा हो लिये..
चलो तुम्हें तुम्हारे सेवाभाव के मद्देनजर तुम्हें कुछ बताऊँ..कूट भाषा में बता रहा हूँ..मतलब खुद ब खुद निकाल लेना..
* उसे कल्पना में जीप में रखी टोकरी में पंजे बांध कर रखे गए मुर्गों की आंखें दिखाई देने लगीं..जान पड़ा कि मकान में बंद वो सभी औरतें उन मुर्गों जैसे हाल में हैं..जब चाहे उनकी गर्दन मरोड़ कर उन्हें समाप्त किया जा सकता है और खाने वाले पूरा मजा ले सकते हैं..*
* वो किसी अंग्रेज की अवैध औलाद..गोरी मेम जैसे..गांव के जमींदार के बेटे को उससे आशनाई हो गई..कुछ दिन तो गांव के ऊंची जात वाले रसूखदार लोग खामोश रहे..एक दिन जमींदार के छोकरे की अनुपस्थिति में उस लड़की को मंदिर में बुलाकर उसके साथ सारे करम कर डाले गए..और नदी किनारे उसे मरा जान फेंक दिया गया.. नाव से लौट रहे जमींदार के बेटे को वो किनारे पड़ी मिली तो उसे नाव पे लाद लिया..उसे गोद में लिए पड़ा रहा..फटे कपड़ों से झांक रहा बदन उसको उकसाने लगा..लड़की के प्राण पखेरू कब के उड़ चुके थे..वो मुर्दा शरीर से ही खेलता रहा और कहीं रुक कर उसका शरीर फेंक दिया*
बोर तो नहीं हो रहे न ठाकुर..लो एक और कहानी सुनो..तुम्हारे बहुत काम आएगी जब बालिकागृह कांड से निर्दोष छूट जाओगे..
पिछला जो सुनाया वो यशपाल और कोंकणी
लेखक खनोलकर का है..अब मंटो को सुनो..
* बेहद रसूखदार रिटायर्ड अफसर के घर उनकी दस साल की बेटी की हमउम्र लड़की घर के ऊपर के कामकाज को रख ली गई थी..बेगम साहिबा फ़राग दिल की थीं..उसके लिए अच्छे अच्छे कपड़े सिलवा दिए..काम से फ़ारिग हो कर दोपहर में वो लड़की अफसर के बेटी बेटे के साथ धमाचौकड़ी मचाती..
उस शोरगुल से कई बार बैठकखाने में आराम फर्मा रहे खानबहादुर साहिब को परेशानी भी होती..
उन जाड़ों में रिश्तेदारी में शादी के चलते बेगम साहिबा बच्चों को लेकर वहां चली गयीं.. रात को लौटना था..किसी काम से बीच में ही आ गयीं तो देखा बैठकखाना अजीब सी बदबू भरा है और खान बहादुर साहिब उस जाड़े की रात में गुसलखाने में नहा रहे हैं..बदबू का कारण तलाशते बेगम को तख़्त के नीचे खून से लिथड़ी खानबहादुर की दातौन मिली..
सुबह खानबहादुर को गिरफ्तार कर लिया गया..जुर्म संगीन था..उस रात शादां अपनी झोपड़ी बहुत बुरे हाल में पहुंची..घर पहुंचते ही बेहोश हो गई..उसे तुरंत अस्पताल ले गए..शादां को थोड़ा होश आया..मुहँ से सिर्फ खान बहादुर निकला और फिर बेहोशी में ही मर गयी..मुकदमा चला..लेकिन कोई गवाह न होने से साफ छूट गए खान बहादुर साहिब को कोई फर्क नहीं पड़ा..बस, उन्होंने दातौन करना छोड़ दिया..
7/30/18