सोमवार, 30 मार्च 2020

एक लहसुन, एक आलू-एक तोता, एक भालू

मेरी बारात में बुआ-फूफा, जीजा, मामा, चचा-ताऊ, मौसा-मौसी वगैरह का सिरे से गायब रहना मंटो की शादी की याद दिलाता है..हम दोनों की शादी में सिर्फ माँ शरीक हुईं..

लेकिन मेरी शादी में बहन थी..मंटो का हाल यह कि उनकी अपने जीजा से नहीं पटती थी..तो बहन ने कार में बैठे मंटो की अपनी छत से झांकते हुए बलैयां ली थीं..बारात उनकी भी कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा टाइप थी, तो अपना हाल भी कुछ बहुत अलग नहीं था..

मंटो कार से बम्बई के बम्बई में ही विदा करा लाये थे तो अपन को रेलगाड़ी का सहारा लेना पड़ा...उनकी शादी में ससुराल पक्ष के सब मौजूद थे तो अपनी शादी में दुल्हन और दुल्हन की मां को छोड़ सारे रिश्ते आसमान से टपके थे..हमने भी नहीं पूछा कि आप कौन..सबने बारी बारी से अपना परिचय दिया और पैर छूने और छुआने का काम तुरंत ही निपट गया.. चौबों का ये जमावड़ा काफी शालीन क़िस्म का था, वरना लखनऊ के शुद्ध चौबे होते तो शुरुआत ही मां बहन से करते..

मंटो और मेरी शादी की खास विशेषता कि बाप दोनों तरफ के न होना.. उनके मामले में दोनों तरफ वाले ऊपर जा चुके थे..अपन के मामले में दोनों थे तो धरती पर, लेकिन निजी कारणों से वो अपनी बेटी और वो अपने बेटे के विवाह में शामिल नहीं हुए..

चंद घंटे जनवासे में गुजार कर रात के दस बजते ही मंटो की फिल्मी बारात कश्मीरी खाने का लुत्फ उठा कर माहिम के जाफर हाउस से अपनी खोली की ओर विदा हो ली और अपनी बारात स्टेशन की ओर..

एक और फर्क कि मंटो को दहेज में ट्रक भर के समान मिला और अपन को एक विदेशी ब्रीफकेस, जिसमें मात्र सूट पीस..दुल्हन को क्या मिला यह आज तक न तो हमको पता, न ही कनि-कबीर की दादी को पता...

बाद में जब पाठक साहब नामुदार हुए, तब इंदिरा जी से भी मिलना हुआ और सोनिया गांधी से भी..नारायण दत्त तिवारी भी मिले हेमवती नंदन बहुगुणा भी..वो आगे ..

जारी..



8/22/18