चे ग्वेरा की अंतिम लड़ाई
चे ग्वेरा ने माओत्से तुंग के क्रांति के निर्यात के सिद्धांत को अपनाते हुए बोलीविया में अपना ट्रेनिंग कैम्प नानसाहूआजू नदी की घाटी में बनाया, जहां से करीब थे तीन शहर कोचाबामा, सान्ताक्रूज और सुक्रे, जो सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण थे..
1966 के अंत में शुरू हुई तीन-चार महीने की कड़ी ट्रेनिंग के बाद गुरिल्ला दस्तों ने बोलवियाई फौजी रिसालों पर हमले बोलने शुरू कर दिये.. चे की निगाह में क्यूबा अभियान की शुरुआत की तुलना में बोलविया अभियान बेहतर ढंग से गति पकड़ रहा था। लेकिन आगे चल कर हालात बिगड़ते गये। कुल छह माह की गुरिल्ला कारर्वाई में चे के दस्ते ने तीस सैनिक मारे और अपना एक आदमी खोया.. इस बीच ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिससे दुनिया भर को पता चल गया कि चे बोलविया में हैं.. अमेरिका तुरन्त हरकत में आया और बोलवियाई फौज की सैकेण्ड रेंजर बटालियन को सीआईए की देखरेख में ट्रेनिंग दिलाने के बहाने बोलविया से समझौता किया..
चे की मुश्किलें शुरू हो चुकी थीं.. उसके छापामार दस्ते के लोग या तो सैनिक झड़पों में घायल होते जा रहे थे या किसी न किसी बीमारी की चपेट में आ कर असहाय होते जा रहे थे.. मौतों का सिलिसला भी शुरू हो गया था..लड़ने वालों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही थी और नयी भरती नाममात्र को थी.. उनका स्थानीय जनता से जुड़ाव हो ही नहीं पा रहा था..
सितम्बर आते-आते अमेरिका से ट्रेनिंग पायी साढ़े छह सौ जवानों की बटालियन पूरी तरह सक्रिय हो चे और उनके दस्तों के खात्मे में जुट गई..चे की 11 महीने के बोलवियाई अभियान के दौरान लिखी गई डायरी पर आखिरी कलम सात अक्टूबर को चली.. उस दिन तक चे का दस्ता सैनिक टुकड़ियों से पूरी तरह घिर चुका था और अन्तिम समय हर पल नजदीक आता जा रहा था..
आठ अक्टूबर को रेंजरों को सूचना मिल चुकी थी कि चे अपने दस्ते के साथ घाटी के किस हिस्से में छिपे हैं.. उसी दिन अन्तिम भिड़ंत हुई और दोपहर डेढ़ बजे पैरों में कई गोलियां खा चुके चे रेंजरों के हाथ पड़ गये..और नौ अक्टूबर की सुबह एक स्कूल में बंद किये गए चे और उनके दो साथियों को गोली मार दी गई..कुछ देर पहले ही ज़ख्मी चे क्लासरूम के ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिख रहे थे..
चे की हत्या ने उन्हें लोकप्रियता के शिखर पे ला खड़ा किया कि करीब 40 साल बाद जब उनके महाद्वीप के देशों से अमेरिकी दलालों को मार-मार कर भगाया जा रहा था, तो हर किसी की आंखों में चे बसे हुए थे। और आज तमाम दक्षिण अमेरिकी देशों में जो सरकार हैं, वे खुल कर अमेरिकी नीतियों का विरोध कर सत्ता में आयी हैं।
10/10/18