नूरजहाँ, क्रिकेटर और metoo..
मंटो लिखते हैं कि नूरजहाँ को तबसे जानते थे जब वो बेबी हुआ करती थीं..जबकि सिनेमा के पर्दे पर उनका जिस्म बेबी की सूरत और सीरत से कई गुना आगे निकल चुका था..
1936 में बम्बई के वासी बने मंटो ने बाद के दो साल दिल्ली में गुजारे और 1942 में फिर बंबई लौट आये..उन्हीं दिनों नूरजहाँ भी लाहौर से इस फ़िल्मनगरी में पधार गयीं ..पीछे पीछे उनके दो आशिक़ प्राण और लाहौर में बनी खानदान के निदेशक शौकत हुसैन रिज़वी भी..खानदान से ही नूरजहाँ मशहूर हुईं थीं..लेकिन शौकत और नूरजहाँ लाहौर से ही एक दूसरे पर तलवारें ताने हुए थे, जिसका फायदा उठाने की फिराक में प्राण लगे हुए थे..
बम्बई आते ही मंटो की शौकत से खासी दोस्ती हो गयी..तब मंटो को पता चला कि शौकत नूरजहाँ के लिए पागल हुआ पड़ा है..
इधर बम्बई आते ही नूरजहाँ की आवाज़ ने झंडे गाड़ने शुरू कर दिए..और सूरत के पीछे दीवानों की कतार लगने लगी..उनमें संगीतकार रफ़ीक ग़ज़नवी और कमाल अमरोही सबसे आगे थे..और अब तक कई अभिनेत्रियों को ठिकाने लगा चुके कोई निजामी साहब ने नूरजहाँ को जैसे गोद ही ले लिया..
नूरजहाँ के लिए शौकत की दीवानगी देख मंटो ने एक शाम निज़ामी साहब के यहां नूरजहाँ को ऐसा "बरगलाया" कि नूरजहाँ अपने लाहौरी आशिक़ के पहलू से जा लगीं..
शौकत एक काबिल फिल्मकार साबित हुए..और बम्बई में उन्होंने नूरजहाँ से निकाह कर उनके साथ कई फिल्में बनायीं..उनमें मंटो की कहानी नौकर पर बनी फिल्म खूब चली..
बंटवारे के बाद शौकत ने लाहौर में फ़िल्म स्टूडियो बनवाया और वो अपने फ़न में काफी कामयाब रहा..वहां भी नूरजहाँ के खूब नैन मटक्के चले..
नूरजहाँ का दिल पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर नज़र मोहम्मद पर आ गया था..मंटो लिखते हैं कि नूरजहाँ और नज़र की इश्कबाजी का सिलसिला न जाने कब तक चलता..कि एक दिन शौकत ने दोनों को रंगे हाथ पकड़ने का प्लान बनाया..पकड़े जाने से बचने के लिए नज़र मोहम्मद ने दूसरी मंजिल की खिड़की से छलांग लगा दी और दाहिने हाथ की कलाई तुड़वा कर क्रिकेट से हमेशा के लिए बाहर हो गया..
10/13/18