सोमवार, 30 मार्च 2020

हम कुंद होने की क्षमता भी खो चुके हैं..

...नए पैक में थोड़ा पुराना थोड़ा ताज़ा...


पतली गली से कटने का कष्ट या तो मंटो ने झेला या अपन ने .... कहाँ तो ससुरे ग़ुलाम कश्मीर के मुजफ्फराबाद तक से फ़ोन आते थे..सर जी हमें अपना स्टिंगर ही बना लीजिये...... सुना है आपके साथ काम करने में बहुत मज़ा आता है......  एकाध एके चाहेंगे तो भिजवा देंगे...... 

और अब.......

दिन में 18  घंटे फ़ोन से लगे रहने वाले कान अब सुनने को तो मोहताज़ हो ही गए.. मैसेज भी कैसे कैसे आते हैं..... हम फलानी जगह  घास खोदने जा रहे हैं आपकी उपस्थिति से हम महकने लगेंगे .... ये आप वाले होते हैं …आज दोपहर एक बासी क्रिकेट मैच देखते मैसेज आया और जो अक्सर आता है...... 
मैं अकेली हूँ आप क्या कर रहे हैं..... चलिए मीठी मीठी बातें करें......  
अब उस नेकबख्त को क्या समझाऊँ कि मैं बहुत देर से उसी को कोस रहा  हूँ..... 

लेकिन अब तो ये भी आने बंद हो गए...

सोचा न्यूज़ चैनलों को टटोला जाए ..... हालाँकि  दोपहर का वो समय ऐसा होता है कि लगभग सभी चैनल सास भी कभी बहु थी या किस्मत कनेक्शन या निर्मल दरबार की चिप्पी लगा कर बैल की तरह औंघाते मिल जाएंगे....  

आज कल की दोपहरें सिर्फ पानी बरसाने का काम कर रही हैं ..TV पर कश्यप जी या सिंह जी की चीख चिल्लाहट में कोई कमी नहीं आई है..जन्माष्टमी आने को तैयार बैठी है..हर जन्माष्टमी की तरह इस बार भी शिवपाल यादव चाचा और अखिलेश भतीजे की भूमिका को फिर धार देने में जुट गए हैं..और यदुवंशी कुलश्रेष्ठ मुलायम सिंह अब धृतराष्ट्र की जगह भीष्म पितामह वाली भूमिका में आकर मोदी के पाले में घुसने को तैयार बैठे हैं..

मोदी जी का मल्हार फुसफुसाहट में बदल गया है...

पिछली बार जिस चैनल पर जाओ..  भागलपुर गए प्रधानमंत्री का दमकता चेहरा था ....   उनका शरीर पूरी लय में हाथ पाँव फेंक रहा था ....   गले में पड़ा दुपट्टा अपनी पूरी शान में था.....   अपने रिमोट को दबाते दबाते थक गया पर मोदी नहीं थमे.....  छत पर बन्दर बहुत आते हैं.....  लेकिन वहां भी मोदी मोदी.. ....  छोटी सी कनि चिल्लाई तो लगा नीतीश  नीतीश चिल्ला रही है..... कबीर बोले तो लगे बिहार बिहार....  आखिर सर पीटता हुआ बहुत दिन से छोड़ा पान खाने निकल गया.....लेकिन दस रुपये नाली में उगल कर चला आया..ससुरी तम्बाकू भी दूसरों के धोरे जा बैठी..

यह बिलकुल समझ से पर है कि प्रधानमंत्री जी की मन की बात को अमृतवाणी क्यों बनाया जाना चाहिए और उन्हें बोलते डेढ़ अरब जनता को जबरदस्ती  क्यों दिखाया जाना चाहिए.... हो सकता है कोई सो रहा हो, कोई शौच में हो, कोई महिला सौरी में हो, कोई देवदास बना घूम रहा हो, कोई लड़की छेड़ रहा हो.. 

दुनिया के किसी लोकतांत्रिक देश में ऐसा होता है क्या … क्या किसी देश का मीडिया इस कदर गुलाम है क्या....   एक चुनावी प्रचार के लिए गए प्रधानमंत्री के बोल सुनना  पूरे देश के लिए ज़रूरी क्यों है क्या कोई आपात स्थति है या देश पर ऐसी कौन सी आफत आ पड़ी है  कि हम नमो को सुनें.....  मीडिया को पी एम ओ को आदेश जारी हो जाता है कि बंद कर ये सब ऊल-जुलूल दिखाना.... बिहार संवरने जा रहा है .... उत्तर प्रदेश गाभिन है..उसको दिखा … और सभी चैनल अपनी कमर को कुछ इस अंदाज़ में झुकाते हैं कि अगले को बदबू निकलता दिखे...  

असली बात तो ये है कि आज़ाद भारत के एकमात्र जन नेता जवाहर लाल  नेहरू ही थे..... बाक़ी तो सब भीड़तंत्र से जुड़े मैनेजमेंट गुरु हैं  ......  वो व्यक्ति चाहे जब बोले जनता सुनने को तैयार रहती थी  लेकिन उसके लिए उनके और उनकी जनता के बीच न तो पीएमओ नामका भारी भरकम प्रतिष्ठान हुआ करता था न इतने सारे न्यूज़ चैनलों के ताम झाम......

ये पीएमओ जैसा सत्ता का पिछवाड़ा अटल जी की देन है.... इंदिरा जी चौकड़ी से काम चलाती थीं और राजीव दोस्ती यारी से 

अब सवाल ये है की प्रधानमंत्री हमसे अलग है या हममें से ही कोई..... किस लोकतांत्रिक देश में किसी सत्ताधारी  के सड़क पर निकलने पर ट्रैफिक  रोक दिया जाता है … इस देश में तो  पूरे चलते-फिरते समाज को कुंद बनाया जा रहा है ..... और दिक्कत ये है कि हम कुंद हो चुके हैं..बल्कि कुंद होने की क्षमता भी खो चुके हैं..

9/1/18