राजीव मित्तल
पंद्रह..हां 15 सितम्बर....पल्टून पुल के सामने से बस पकड़ी और नोएडा के सेक्टर बारह में उतर ग्यारह तक चल कर सहारा के विशाल परिसर में। बाहर ही अरविंद झा दिखे तो पकड़ लिया.....अंदर तक धंसते जाने का सहारा। आप कब ज्वायन कर रहे हैं...पूछते हुए अपने साथ बधवार जी के कैबिन में ले गये...वहीं मिले पंडित उदयन शर्मा.....उदयशंकर...प्रभात डबराल। प्रभात से कई साल की दोस्ती...पांच महीने पहले इंटरव्यू में अपन को परखने वालों में इंद्रजित बधवार भी थे.....उदयशंकर से पहली मुलाकात और....
पंडिज्जी से पहली मुलाकात चंडीगढ़ में रमेश नैय्यर के घर पर और दूसरी....जब संडे आब्ज़र्वर निकालने की तैयारी कर रहे थे...चंडीगढ़ से दिल्ली पहुंचा और फोन कर नॉर्थ या साउथ एवेन्यू के उनके सांसदी बंगले में घुस गया था....बात अच्छे से की... पर उस साप्ताहिक अखबार की अपनी टीम में लिया नहीं..
देखते ही चहके...तुम कब आ रहे हो....कितने ऑफर लेटर तुम्हारे घर भिजवाये जाएँ .....मैं 21 को ज्वायन करूंगा...किसी ज्योतिषी से साइत निकलवायी है क्या...फिर खुद ही कागज पर कोई गुणा-भाग लगाया...यारदिन तो बहुत अच्छा चुना है....अब अपने को चैनल हेड बधवार जी से सेलरी पर बात करनी थी कि इंटरव्यू में जो तय हुआ था उसमें कटौती क्यों.....अरे तुम आओ तो सही चैनल शुरू होते ही सब ठीक हो जाएगा....
वहां से निकल यहां-वहां टूलने लगा....सहारा का वो कॉरपोरेट विंग इस कदर चकाचक कि मध्यमवर्गीय घबराहट तारी होनी शुरू....शुरू होने वाले न्यूज चैनल में ज्वायन किये चेहरे उसी में बैठाए गये थे.....तभी एक जानी-पहचानी आवाज...अरे...हमारे सर जी आ गये....बीआईटीवी में एंकर रह चुकी लुभावनी विभा तैलंग....सुबह के बुलेटिन में ज्यादातर साबका उसी से पड़ा...जरा सी गलती पर खूब फटकार झेलती.....लेकिन बुरा नहीं माना कभी ...अब यहां पर भी वही मुरीदपना.....
कम्प्यूटर पर खटर-पटर कर रहा वो चेहरा.... कभी कहीं देखा सा...याद्दाश्त पर जोर डाला...बीआईटीवी में एडिट बे की ओर जाती एक लड़की...हाथ में टेप...नजर और ध्यान गांडीवधारीअर्जुन का चिड़िया की आंख को भेदना जैसा....उसकी आवाजाही कुछ ही दिन रही...तुम बीआईटीवी में क्या कर रही थीं.....चेहरे पर बेहद आकर्षक मुस्कान...आप वहां थे क्या....था क्या...मैं ही था...मैं कुछ दिन ही वहां रही प्रोग्रेमिंग में......वो थी मुजफ्फरपुर वाली पंखुरी ..प्रमोद जोशी मिले...सुखद एहसास....संजय द्विवेदी दिखे.......
फिर लौट लिया .....अब बीआईटीवी छोड़ने का वक्त नजदीक है....एक बार फिर नाइट ड्यूटी लगवायी.........चार दिन की वो ड्यूटी करके ही विदा लूंगा....उदासी गहराती जा रही...घबरा कर एक दिन के लिये लखनऊ और एक दिन के लिये चंडीगढ़ निकल गया....लौट कर चार रात खूब हल्ला गुल्ला मचाया...सबको लग गया कि इसकी भी चला-चली की वेला है....शरारतें चालू आहे.... काम खत्म होने के बाद हमेशा की तरह पूरे हॉल की सारी कुर्सियां एक क्यूबिकिल में जमा देता.....ऐसा लगता की की पचासों भेड़ें बाड़े में बंद हैं....कोई भी आता तो उस दृष्य पर एक नजर जरूर डालता...चैनल हेड नंदन भी समझ जाते की हरकत किसकी है। दिन की ड्यूटी वाले आते और इस नामुराद को कोसते उस क्यूबिकिल से कुर्सी उठाते .......उन्हीं दिनों एक चस्का और लगा था.....रात में काम खत्म कर नौटंकी टाइप कुछ लिख कर जाना और फिर सबको टैग कर देना। जाने माने व्यंग्यकार उर्मिल थपलियाल को पढ़ कर खूब आनंद उठाया था...विधा उन्हीं की अपनायी। उन उदास दिनों में भी सब खूब मजा लेते..भावना तो यहां तक कहती कि इन सबका मंचन होना चाहिये।
अखिरी रात का विदाई संगीत..महफिल जमा के सबुह का बुलेटिन निकाला गया। कुछ कहे-सुने बिना सब कुछ कह पाने का यह अनोखा अंदाज सुबह को बहुत बोझिल बना रहा....नीचे उतर कर भटकने का मन कर रहा था.....लेकिन नंदन को इस्तीफा जो पकड़ाना है....दस बजे आ गए....तो तुम •ाी चले.....कैसे कहूं कि रुक जाओ.....मयूरविहार में ही रह रहे जहांगीर खान से पहले ही स्कूटर मांग लिया था...सहारा जाने और वहां ज्वायन करने को......अपना एलएमएल छुए तो सदियां हो गयी हों जैसे.... नीचे छोटी सी कोठरी में खड़ा टसुए बहा रहा है।
रात वाले सब चले गए थे...दिन वाले अ•ाी आए नहीं थे...दर ओ दीवारों पर निगाह डाल स्कूटर •ागा दिया नोएडा की तरफ और ज्वायनिंग दे दी.......आठ घंटे का नया बसेरा...ज्यादातर ताजातरीन चेहरे....ऊपर से नीचे तक बांध लेने वाले माहौल के बाद इन अजनबियों में अब अपने को रमाना है......जो घर फूंके आपनो वो चले चले हमारे साथ....जैसों को तलाशना है...और यह •ाी नहीं •ाूलना है....चंद दिन था बसेरा हमारा यहां....हम तो मेहमान थे घर तो उस पार था......